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Khairagarh: पूर्व सरपंच और सचिव की मिलीभगत से निजी जमीन पर बोर खनन का खेल!

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## पूर्व सरपंच और सचिव की मिलीभगत से निजी जमीन पर बोर खनन का खेल!


संवाददाता - मंदीप सिंह चौरे 

स्थान - खैरागढ़ 


**खैरागढ़,** जनपद पंचायत निधि का खुलेआम दुरुपयोग करते हुए, देवरी ग्राम पंचायत के आश्रित ग्राम सरकतराई में एक बड़ा घोटाला सामने आया है। वर्ष 2022-23 में पेयजल व्यवस्था के लिए स्वीकृत ₹1 लाख 55 हजार की मोटी रकम का इस्तेमाल, हैरतअंगेज तरीके से, एक नहीं बल्कि दो-दो निजी भूमियों पर अवैध बोर खनन के लिए किया गया। इस पूरे मामले में पूर्व **सरपंच** और **सचिव** की गहरी मिलीभगत साफ नजर आ रही है, जिसने सरकारी खजाने को चूना लगाने का यह "रोचक" तरीका इजाद किया।





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### निजी जमीनों पर बोर खनन का दोहरा 'धमाका'!


यह जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि बोर खनन का यह खेल सिर्फ एक बार नहीं खेला गया। पहले तो ग्राम पंचायत ने प्रस्ताव निकाला और खसरा नंबर 258 में बोर खनन कराया गया। चौंकाने वाली बात यह है कि यह जमीन भी निजी संपत्ति थी! और तो और, जब यहां बोर "ड्राई" निकल गया, तो खेल खत्म नहीं हुआ। सरपंच और सचिव की जुगलबंदी ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए, खसरा नंबर 318/2 में फिर से बोर खनन का कार्य करा दिया। और अंदाज़ा लगाइए, यह जमीन किसकी थी? यह पूर्व जनपद पंचायत सदस्य **मंजू धुर्वे** की निजी संपत्ति निकली! यानी, सरकारी पैसे से, एक नहीं, बल्कि दो-दो बार निजी भूमियों पर बोर खोदने का कारनामा अंजाम दिया गया। यह सिर्फ अनियमितता नहीं, बल्कि सरकारी धन के खुलेआम दुरुपयोग का एक जीती-जागती मिसाल है।


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### "ग्रामीणी सहमति" के पीछे मिलीभगत का पर्दा?


जब इस मामले में पूर्व सरपंच **केजराराम साहू** से पूछा गया, तो उन्होंने बड़े ही आत्मविश्वास से कहा कि खसरा नंबर 258 पर खनन शासकीय जमीन पर हुआ था, जो सूखा निकल गया। इसके बाद, ग्रामीणों की सहमति से निजी जमीन पर खनन कराया गया। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन निजी भूमियों पर, केवल "ग्रामीणों की सहमति" के आधार पर किया जा सकता है? क्या इस "सहमति" के पीछे सरपंच और सचिव की साठगांठ का खेल नहीं था, जिसने नियमों को ताक पर रखकर सरकारी फंड को अपनी जेब भरने का जरिया बना लिया?


देवरी पंचायत सचिव ने जानकारी देते हुए बताया कि प्रस्ताव में जो खसरा नंबर 258 दर्ज किया गया है, वह दरअसल एक लिपिकीय त्रुटि है। वास्तविक रूप से बोर खनन खसरा नंबर 250 में किया गया है। सचिव ने स्पष्ट किया कि यह मात्र लेखन संबंधी गलती है और इच्छुक व्यक्ति स्वयं स्थल पर आकर इसकी पुष्टि कर सकते हैं। इस संबंध में शिकायत कलेक्टर कार्यालय में प्रस्तुत की गई है, जिसकी जांच वर्तमान में प्रक्रिया में है। **यह "लिपिकीय त्रुटि" का बहाना क्या सिर्फ जांच से बचने का एक पैंतरा है?**


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### तीन साल बाद भी कार्रवाई का इंतजार: क्या अधिकारी भी शामिल?


इस बोर खनन घोटाले को तीन साल बीत चुके हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। ग्रामीणों द्वारा कलेक्टर को ज्ञापन सौंपे जाने के बावजूद, मामले को लगातार दबाने का प्रयास किया जा रहा है। स्थानीय सूत्रों की मानें तो इस पूरे प्रकरण में अधिकारियों से लेकर पूर्व सरपंच केजराराम साहू और तत्कालीन सचिव तक की मिलीभगत की प्रबल आशंका है। बिना किसी आधिकारिक निरीक्षण और नियमों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन करते हुए, इस अवैध कार्य के लिए जनपद निधि से सरकारी राशि कैसे जारी कर दी गई, यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है।


ग्रामीणों का स्पष्ट आरोप है कि प्रभावशाली व्यक्ति होने के कारण पूर्व जनपद पंचायत सदस्य पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। वे मांग कर रहे हैं कि इस मामले में शामिल सभी लोगों की जवाबदेही तय की जाए और दोषियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो। अब देखना यह है कि जिम्मेदार अधिकारी इस गंभीर मामले पर संज्ञान लेते हुए निष्पक्ष जांच कराते हैं और सरकारी धन के इस दुरुपयोग पर लगाम लगाते हैं या नहीं। क्या इस "रोचक" बोर खनन घोटाले के पीछे के असली किरदारों का पर्दाफाश हो पाएगा?

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