*केन्द्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के रोक के बावजूद आखिर क्यों हो रहा है ईंट का अवैध निर्माण*
*रिपोर्ट --जयविलास शर्मा
*देवभोग क्षेत्र में अवैध ईंट निर्माण से सरकार को लग रहा हर साल लाखों के राजस्व का चूना
गरियाबंद --केन्द्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन विभाग के रोक के बावजूद देवभोग और मैनपुर ब्लाक के ग्रामीण क्षेत्रों में अवैध ईंट भट्टे का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है एक और प्रशासन इसे रोकने में नाकाम है तो दूसरे और अवैध कारोबारी भी नियमों को ताक में रखकर अपना कारोबार चमका रहे हैं।देवभोग क्षेत्र में करलागुडा डोंगरीगुडा, गिरसूल नाला बरकानी, दिवानमुडा सहित क्षेत्र में सैकड़ों ऐसे जगह है जहां कारोबारी हर साल ईंट भट्टे के कारोबार से लाखों रूपये अर्जित करते हैं पर राजस्व के नाम सरकार को फुटी कौड़ी तक नहीं देते हैं।ऐसा इसलिये करते हैं क्योंकि स्थानीय प्रशासन कारवाई करने रूचि नहीं लेती है और आला अधिकारी से मिलीभगत कर अपने इस अवैध कारोबार को अंजाम देते हैं।देवभोग क्षेत्र में डोंगरीगुडा, गिरसूल नाला और करलागुडा में बडा कारोबार चल रहा है।
*बीते पांच वर्षों में प्रशासन ने नहीं की कारवाई राजस्व वसूली शून्य*
प्रशासन के नाक के निचे अवैध ईंट का कारोबार बीते कई वर्षों से बेखौफ चल रहा है प्रशासन को पता है अवैध ईट भट्टे का निर्माण हो रहा हैपर आज तक कोई ठोस कारवाई नहीं हो सका है हालांकि तहसीलदार गेंदलाल साहू ने कहा क्षेत्र में चल रहे ईंट भट्टे का परमीशन नहीं है चल रहे अवैध कारोबार पर प्रशासन जल्द कारवाई करेगी।वही बीते कई वर्षों से कारोबार चल रहा है मगर प्रशासन ने कभी बड़ी कारवाई नहीं की है।
*क्षेत्र में चिमनी से नहीं बल्कि पेड़ काटकर जलाया जाता है ईंट,पर्यावरण प्रदूषण का खतरा*
अगर हम वन एवं पर्यावरण संरक्षण नियमों को देखें तो पेडों की कटाई करना नियमों के विरूद्ध है कारोबारी इस नियम की धज्जी उड़ा रहे हैं।वही ईंट भट्टे को पकाने चिमनी का प्रयोग करना होता है पर क्षेत्र भर में चिमनी का प्रयोग शून्य है क्षेत्र के सभी भट्टे जंगल या खेतों के पेड़ों को काटकर जलाया जाता है जिससे पर्यावरण संरक्षण को खतरा बना हुआ है और भट्टों के धुओं से प्रदूषण भी पांव पसार रहा है।
*कारवाई का अधिकार तीन विभाग को पर रायल्टी वसूली में नहीं ले रहे हैं रूचि*
लाल ईंट के अवैध निर्माण को रोकने वन,राजस्व और खनिज विभाग को अधिकार है और ये तीनों विभाग लाल ईंट निर्माण को बंद या रायल्टी की वसूली कर सकते हैं और लाल या कच्चे भट्टे के लिये कारोबारी को पर्यावरण और खनिज विभाग से अनुमति लेना जरूरी होता है पर क्षेत्र भर में हो रहे निर्माण में नियमों को धत बताकर बेखौफ अवैध कारोबार चला रहे हैं।विभागों की अनदेखी इतनी की ईंट कारोबारियों को प्रशासन का खौफ नहीं है।
*चिमनी वाले भट्टे को शर्तों के आधार पर खनिज विभाग देता है परमिशन*
साधारणतः क्षेत्र में अवैध तरीके से चलने वाले हाथ भट्टे पर पूर्णतः प्रतिबंधित है।चिमनी वाले भट्टे के लिये खनिज विभाग शर्तों के आधार पर परमीशन देता है यह बड़े स्तर का होता है इसके लिये कम से कम 10 एकड जमीन का होना अनिवार्य होता है और इसके अनुमति में कागजात तैयार करने करीबन 1लाख और कारोबार के लिये कम से कम पचास लाख रूपये की आवश्यकता होती हैं इसलिये कारोबारी इसके लिये रूचि नहीं लेते हैं। इसलिये अबतक जिलेभर एक भी चिमनी भट्टा नहीं है।
*कुम्हार को मिले छूट का लाभ रसूकदार को और काम करने वाले मजदूरों का पंजीयन तक नही*
परम्परागत कारोबार को दृष्टिगत रखते हुये सरकार ने कुम्हार को कच्चे ईंट निर्माण का छूट दिया है क्षेत्र में आर्थिक रूप से कमजोर इस सम्प्रदाय के लोग ईंट निर्माण के बड़े कारोबारी को करने असक्षम है तो वहीं कुम्हार को मिले इस छूट का लाभ रसुकदार उठा रहे हैं। नियमानुसार ईंट ठेकेदारों को भट्टे में काम करने वाले मजदूरों का पंजीयन कराना अनिवार्य होता है क्षेत्र में अवैध रूप से संचालित भट्टों में कहीं भी मजदूरों का पंजीयन नहीं है।और मजदूर की आयु भी अठारह वर्ष से अधिक होनी चाहिए परन्तु अधिकांश भट्टों में बालश्रमिको को काम करते देखा जाता है।
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