फसल व पशुधन पूजन का महापर्व पोला पर्व अंचल में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
दुर्गुकोंदल:- आज पोला का त्यौहार मनाया जा रहा है। इस त्यौहार की तैयारी को लेकर हफ्ते भर पहले से ही बाजार सज चुके थे। वर्तमान में शहरी हो या ग्रामीण क्षेत्र,बैल की कमी होने के चलते मिटटी के बैल खरीदने कुम्हार द्वारा मिट्टी के बर्तन पोरा,नंदी बैल खरीदने पहुंचने लगे थे। वही बाजार में रंगबिरंगी मिटटी के खिलौने की भी खूब बिक्री हुई। विदित हो कि छत्तीसगढ़ में पोला त्योहार खेती-किसानी से जुड़ा हुआ पर्व है। भाद्र मास की अमावस्या को मनाए जाने वाले इस पर्व को लेकर मान्यता है कि इस दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती है। इस दिन परंपरानुसार खेत जाने की मनाही होती है,जिसके कारण दुर्गुकोंदल अंचल के किसान अपने घरों में रहकर बैलों को सजाकर,नहलाकर पूजा-अर्चना किये। इस पर्व को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है, लेकिन इसके मूल में बैलों की पूजा और खेती की उन्नति के लिए आशीर्वाद प्राप्त करना है।ब्याख्याता संजय वस्त्रकार बताते हैं कि ऐसी मान्यता है कि इस दिन अन्नमाता,गर्भधारण करती है,अतः धरती मां की पूजन की जाती है, और लोग खेत नहीं जाते हैं। किसान इस समय अपनी खरीफ फसल की बोवाई और निंदाई का कार्य पूरा कर चुके होते हैं। शुभ दिन पर गोधन पशुधन के साथ-साथ कृषि उपकरणों की पूजा का भी विशेष महत्त्व है।कुछ स्थानों पर बैल सज्जा और बैल दौड़ की प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।सदियों से चली आ रही इस परम्परा का महत्व आधुनिक काल में प्रतीकात्मक रह कर न रह जाये,क्योकि आज परिवार में पशुधन का महत्व कम होते जा रहा है।इस पर्व के लिए बाजार में पूजा के लिए मिट्टी से बने नंदी, बैल समेत जांता चक्की व चूल्हा का सेट भी बिक रहा है।
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