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Durgkondal: दुर्गूकोंदल महाविद्यालय में आयोजित हुआ एक दिवसीय जनजाति समाज गौरवशाली अतीत का एक दिवसीय कार्यशाला*

 *दुर्गूकोंदल महाविद्यालय में आयोजित हुआ एक दिवसीय जनजाति समाज गौरवशाली अतीत का एक दिवसीय कार्यशाला*


*वक्ताओं ने जनजातियों की संस्कृति एवं परंपराओं के बारे में जानकारी देते हुए जनजातीय परंपरा व संस्कृतियों को बचाए रखने के लिए प्रेरित किया*



दुर्गूकोंदल | स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी कँगलु कुम्हार शासकीय महाविद्यालय दुर्गूकोंदल में मंगलवार को जनजातीय गौरव दिवस के उपलक्ष्य में एक दिवसीय कार्यशाला किया गया |जनजातियों की संस्कृति एवं परंपराओं के बारे में जानकारी दी तथा छात्राओं को परंपरा व संस्कृतियों को बचाए रखने के लिए प्रेरित किया गया| जिसमें मुख्यातिथि जिला सभापति देवेंद्र टेकाम, अध्यक्षता प्राचार्य डी. एल. बढ़ाई ने की| अति विशिष्ट अतिथि अध्यक्ष विजय पटेल महाविद्यालय, पीलम नरेटी जनपद सदस्य, विकास राजु नायक जनपद सभापति एवं अजजा प्रतिनिधि महाविद्यालय, सविता उइके जनपद सदस्य, सरपंच दुर्गूकोंदल शकुंतला नरेटी, खुटगांव सरपंच मुकेश नरेटी, विशेष अतिथि के रूप में रामचंद्र कल्लो, अशोक जैन, संतो दुग्गा, JBS सदस्य श्रीराम बघेल, सतीश जैन, धरम मंडावी तुका पटेल, गौतम कोटिंगला, किशोर सिन्हा, योगेश कुलदीप, मुकेश गावड़े उपस्थित रहें| कार्यक्रम का प्रारंभ अतिथियों द्वारा भगवान बिरसा मुंडा, छत्तीसगढ़ महतारी, कँगलु कुम्हार, सुखदेव पातर एवं सरस्वती माता की पूजा अर्चना के साथ हुआ। प्रारंभ में कार्यक्रम की रूपरेखा के बारे में संयोजक सहा. प्राध्यापक गोविंद मंडावी एवं सह-संयोजक सहा. प्राध्यापक देवसिंह कांगे द्वारा दी गई। और बताया कि जनजाति समाज के नायकों के योगदान पर न केवल जनजाति समुदाय बल्कि पूरे देश के नागरिकों को गर्व होना चाहिए। उन्होंने जनजाति समाज से जुड़ी उस अवधारणा को खारिज किया जिसमें इसे पिछड़ा और असभ्य कहा जाता रहा है। महाविद्यालय के प्राचार्य डी. एल. बढ़ाई द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा के विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जनजाति समुदाय की सामाजिक व्यवस्था तथा अरण्य संस्कृति से हमें प्रकृति की रक्षा का संदेश मिलता है|

                       मुख्य वक्ता डॉ. विजय बेसरा ने कहा कि जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीत एक समृद्ध और विविध इतिहास है जो उनकी संस्कृति, परंपराओं, और योगदान को दर्शाता है। जनजातीय गौरव दिवस रीति- रिवाज, परंपराएं विषय पर ज्ञानवर्धक व्याख्यान दिया गया। भगवान बिरसा मुंडा, वीर गुंडाधुर, रानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मीबाई, के साहस और बलिदान के बारे में बताया कि उन्होंने विषम परिस्थितियों में शासन व्यवस्था संभालने के साथ ही देश की स्वतंत्रता आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाई। शहीद वीर नारायण सिँह, गैंद सिँह नायक, तिलका मांझी, इंदरू केवट, कँगलु कुम्हार, सुखदेव पात्र जैसे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों एवं वीर शहीदों का उल्लेख किया गया। यहाँ कुछ प्रमुख पहलू हैं, जनजातीय समाजों में समृद्ध सांस्कृतिक परंपराएं हैं, जिनमें नृत्य, संगीत, कला, और लोककथाएं शामिल हैं। जनजातीय समुदायों ने सदियों से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और संवर्धन किया है, जो पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है। जनजातीय समाजों में मजबूत सामाजिक संगठन और सामुदायिक बंधन हैं, जो उनकी एकता और सहयोग को दर्शाते हैं, जनजातीय समुदायों में आध्यात्मिक परंपराएं और प्रकृति के प्रति गहरा सम्मान है, जो उनकी जीवनशैली का अभिन्न अंग है, जनजातीय समाजों ने ऐतिहासिक रूप से अपने अधिकारों और संसाधनों की रक्षा के लिए संघर्ष किया है, जो उनकी वीरता और दृढ़ता को दर्शाता है। भारत में जनजातीय समाजों ने अपनी संस्कृति, कला, और परंपराओं को संरक्षित किया है, जैसे कि गोंड, हल्बा, मुरिया, भील, धुर्वा और संथाल समुदाय जनजातीय समाजों का गौरवशाली अतीत उनकी समृद्ध संस्कृति, परंपराओं, और योगदान को दर्शाता है।

               मुख्यातिथि देवेंद्र टेकाम ने कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए कहा कि जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीत के एक दिवसीय कार्यशाला के अवसर पर आपको बताना चाहूंगा कि धरती आबा के नाम से प्रसिद्ध भगवान बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनजातीय अस्मिता और अधिकारों की लड़ाई लड़ी थी, एक समय था जब भगवान बिरसा मुंडा और अन्य ऐसी विभूतियों का नाम इतिहास के ‘गुमनाम नायकों’ में था। हाल के दिनों में, मातृभूमि के लिए उनके पराक्रम और बलिदान को अधिक से अधिक लोगों द्वारा सही मायने में सराहा जाने लगा है। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के दौरान, हमने अपनी संस्कृति और उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास का उत्सव मनाया। हम इसलिए लगातार अपने क्षेत्रों में धर्मान्तरण को लेकर कार्य कर रहें है और लोगों को अपने मुल संस्कृति अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहें है, और आप सभी भी इस बात को ध्यान में रखिए की कोई अपने धर्म को छोड़कर अन्य धर्म में न जाएँ | मेरा मानना है कि भगवान बिरसा मुंडा के आदर्श न केवल जनजातीय समुदायों के युवाओं के लिए बल्कि देश के हर हिस्से में सभी समुदायों के युवाओं के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत हैं।इतिहास के साथ इस नए जुड़ाव को तब बढ़ावा मिला जब सरकार ने 2021 में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को स्मरण करने के लिए भगवान बिरसा मुंडा की जयंती, 15 नवंबर को 'जनजातीय गौरव दिवस' के रूप में मनाने का फैसला किया। धरती आबा,महामानव, क्रांति सूर्य, भगवान बिरसा मुंडा जिसने काम किया, जल, जंगल ,जमीन बचाने, कर दिया तमाम। जल जंगल जमीन को बचाने के लिए झुका नहीं, बल्कि अंग्रेजों को दी चुनौती, छेड़ा जोरदार उलगुलान। महज 25 वर्ष की उम्र में अपनी जान देकर लिख दी उसने, आजादी की नई पहचान।

                               इसी प्रकार विजय पटेल ने जनजातीय गौरव दिवस को मनाए जाने संबंधित जानकारी प्रदान की। साथ ही आजादी के 75 वीं जयंती तथा विभिन्न जनजाति महापुरुषों के बारे में भी जानकारी प्रदान की गई । उन्होंने छात्राओं को जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए आदिवासियों के द्वारा किया गए कार्यों को बताया कि कैसे प्रकृति का संरक्षण आदिवासियों के द्वारा किया जाता है। कार्यक्रम में छात्राओं के द्वारा सुंदर सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति दी गई| इस अवसर पर के.एल. मंडावी सहा. प्राध्यापक याकूब टोप्पो, सहा. प्राध्यापक राकेश घोष, नंदकिशोर यादव, मंजू पुरबिया, दिलीप कुमार ताम्रकार सहित समस्त स्टॉप एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहें |

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