जिम्मेदारी की खामोशी के चलते हो रहा अवैध खनन
पहाड़ों में ब्लास्टिंग केेेेेे दौरान आती है मकानों में दरार
संवाददाता
रितेश गुप्ता
कोटा बिलासपुर
कोटा विधानसभा क्षेत्र में खनन माफियाओं के हौसले बुलंद हैं। कोटा मुख्यालय से महज 3 से 4 किलोमीटर की दूरी में अवैध खनन माफिया ने पहाड़ों की चोटी तक रास्ते बना लिए हैं। खनन विभाग के अधिकारी पहले की तुलना में अवैध खनन कम बता रहे हैं, लेकिन असलियत में अनेक जगह पर अवैध खनन अबाध गति से जारी है। आज भी कोटा क्षेत्र के अमाली गांव आदि क्षेत्र की पहाडिय़ों में अवैध खनन धड़ल्ले से हो रहा है। अवैध खनन रोकने की जिम्मेदारी खनिज विभाग की है, लेकिन कार्रवाई कागजी साबित हो रही है। यदि अवैध खनन इसी प्रकार चलता रहा तो पहाडिय़ां आंखों से ओझल हो जाएंगी।
गड़बड़ा जाएगा संतुलन
कोटा क्षेत्र की पहाडिय़ों से घिरा है। पर्यावरण संतुलन में इन पहाडिय़ों का अहम योगदान है, लेकिन अवैध खनन से पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है। प्रशासन पहाड़ों को बचाने के लिए कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
पहाड़ सफाचट, नीचे खुदाई से बन गई झील
कोटा क्षेत्र की पहाडिय़ों को खनन माफिया तेजी से साफ करने में लगे हैं। पट्टाधारक व ठेकेदार जमकर चांदी कूट रहे हैं। खनिज विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी आंखें मूंदे बैठा है। अवैध खनन का लंबे अर्से से विरोध कर रहे वहां के रहवासी बताते हैं कि पहाड़ों को सफाचट करने के बाद पट्टाधारक पहाड़ों को 250-300 फीट की गहराई तक खोद दिया है
बीमारियों का डर
पत्थर खदानों और क्रेशर में काम करने और इसके आसपास रहने वाले लोग कई तरह की बीमारियों से जूझ रहे हैं। घर के पास से खदान से पत्थर ढोने वाले भारी वाहन दिन-रात कच्ची सडक़ से गुजरते हैं जिससे दिनभर धूल उड़ती रहती है। ये धूल सांस, पानी और भोजन के जरिए शरीर में पहुंचकर बीमार करती है।
इन पहाडिय़ों में पत्थर, गिट्टी वाले पत्थर, मिट्टी आदि निकालने, सडक़ बनाने व मकान निर्माण के लिए इन पहाडिय़ों को काटने की होड मची हुई है। जो पहाड़ सुबह के समय ऊंचा दिखाई देता है, अगली सुबह तक तो मशीनें उसे निगल लेती हैं। अवैध खनन से पहाडिय़ों पर रहने वाले वन्यजीवों का पलायन हो रहा है। ग्रामीणों ने अवैध ब्लास्टिंग और खनन को रुकवाने के लिए एसडीएम, जिला कलक्टर और मंत्री को पत्र लिखकर गुहार की है।
चंद पैसों के लिए चली जाती है जान
पहाडिय़ों में ब्लास्टिंग के दौरान चट्टानों के ढह जाने से अनेक मजदूरों व पहाड़ों के इर्द-गिर्द रहने वालों की जान जा चुकी है।
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