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Durgkondal: पशुधन पोला पर्व विकासखंड मुख्यालय दुर्गुकोंद्ल सहित पूरे अंचल में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया*।

 *पशुधन पोला पर्व विकासखंड मुख्यालय दुर्गुकोंद्ल सहित पूरे अंचल में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया*।    




दुर्गुकोंदल: 14 सितंबर 2023 खरीफ फसल की जुताई-बुवाई का उत्सव पोरा गुरुवार को मनाया गया। दुर्गुकोंदल अंचल के मैदानों में जहां बैल दौड़ प्रतियोगिताएं हुई, वहीं गली-मोहल्लों में बच्चे नंदिया बइला चलाने का आनंद लेते दिखे। इधर, घरों में तिहार मनाने की तैयारियां एक दिन पहले शुरू हो गई थीं। बुधवार शाम से मोहल्ले ठेठरी-खुरमी जैसे पकवानों की खुशबू से महकने लगे थे।बता दें कि, पोरा पर मिट्टी से बने खिलौनों का खास महत्व है। यही वजह है कि बाजारों में कुम्हार हफ्तेभर पहले से ही पसरा लगाकर खिलौने बेच रहे हैं। बुधवार को दिनभर मिट्टी के खिलौने खरीदने बाजारों में भीड़ उमड़ी।गौरतलब है कि क्षेत्र के पारंपरिक बर्तन जिनमें लाल रंग का चूल्हा, हंड़िया, कुरेड़ा, गंजी, टीन, कड़ाही, जाता, सील-लोड़हा आदि शामिल है। पोरा पर मिट्टी से इन्हीं बर्तनों को छोटे आकार में तैयार किया जाता है।इस दिन घरों में उत्साह से बैलों और जाता-पोरा की पूजा कर अच्छी फसल और घर को धन-धान्य से परिपूर्ण होनेे के लिए प्रार्थना की जाती है। तीज-त्यौहार हमारी संस्कृति और परंपराओं का संवाहक होते हैं। यह हमारी धरोहर को अगली पीढ़ी तक पहुंचाते हैं। पोला के दिन मिट्टी के बर्तन और बैलों से खेलकर बच्चे अनजाने ही अपनी मिट्टी और उसके सरोकारों को जुड़ते चले जाते हैं।इस पारम्परिक त्यौहार के अवसर पर संजय वस्त्रकार ब्याख्याता ने कहा कि छत्तीसगढ़ के पारंपरिक त्यौहार जैसे हरेली,हलषष्ठी,पोरा,तीजा आदि हमारा धरोहर है व हमारा दायित्व है कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी समृद्ध संस्कृति का परिचय कराएं और उसके संरक्षण और संवर्धन का प्रयास करें।

         विदित हो कि किसान इस दिन मिट्टी के बने नांदिया बइला व जाता पोरा का पूजा-अर्चना के बाद बच्चे इससे खेलते हैं। वहीं इन खिलौनों को देवी-देवताओं को अर्पित करने की परंपरा भी है।

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