20 रुपए से करोड़ों वसूलने का नया तरीका
किसानों को बीमा का झांसा
कोंडागांव --- आजकल लोग लाखों करोड़ों वसूलने के लिए नया-नया तरीका अपना रहे हैं। कई बार किसानों एवं राशन कार्ड में भी इस तरह का वसूली देखा गया है। इसके पूर्व कुछ लोग प्रत्येक पंचायत में घूम घूम कर राशन कार्ड में कवर लगाकर लाखों वसूली कर चुके हैं। आदिवासी अंचल में भोले भाले लोगों को बेवकूफ बनाकर षड्यंत्र पूर्वक तरीके से वसूली करने का काम काफी समय से चल रहा है। इस समय ऐसा ही कुछ माजरा फिर से देखने को मिला है जब एक किसान संगठन जिसका दिल्ली का पंजीयन दिखाया जा रहा है। उसके द्वारा गांव में कुछ जनप्रतिनिधियों के मार्फत प्रत्येक किसान से 20 रुपए वसूली किया जा रहा है। किसानों के लिए लंबे चौड़े प्रलोभन दिखाए गए हैं उनके पांपलेट से तो यही लगता है कि इनसे बड़ा हितैषी कोई और हो ही नहीं सकता किंतु दूसरी और जब इनके वसूली की ओर ध्यान आकृष्ट हुआ तब माजरा कुछ और लगा। एक गांव में लगभग 15 से 20 हजार रुपए का यदि हिसाब लगाया जाए तो एक जिले में लगभग एक करोड़ के आसपास की राशि वसूल हो सकती है। 20 रुपए को छोटी रकम समझ कर लोग नजरअंदाज कर देते हैं। इसलिए बिना सोचे समझे 20 रुपए दे रहे हैं। बीमा के लिए अन्य किसी प्रकार का फॉर्म नहीं भरा जा रहा है तथाकथित किसान संगठन के द्वारा स्वयं बीमा किया जा रहा है या किसी अन्य बीमा कंपनी से उसका टाईअप है यह भी जांच का विषय हो सकता है। मामले पर तब एक बार पुनः आशंका उत्पन्न हुई जब 20 रुपए वसूली के लिए किसानों का ऋण पुस्तिका, पासबुक, फोटो मंगाकर उन्हें एक छोटा सा रसीद दिया गया लेकिन इस बारे में राजस्व विभाग के छोटे कर्मचारियों से लेकर तहसीलदार तक किसी को कानों कान खबर नहीं है। बस्तर के भोले भाले किसानों के सीधे पन का फायदा कोई भी उठाना चाहता है क्योंकि यहां कोई ज्यादा तर्क वितर्क नहीं करता यदि तर्क वितर्क करते तो 20 रुपए देने से पहले तथाकथित वसुलीकर्ताओं को यह पूछते कि आपके पास अनुमति है क्या? लीगल दस्तावेज कहां है? बीमा का पैसा कौन देगा? इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? बीमा फसल का होगा या इंसान का और यह बीमा क्यों किया जा रहा है।
यूं तो आजकल कई निर्माता एजेंट एवं व्यवसायी बीमा कंपनियों के साथ टाइअप कर 1 रुपए में भी 1 लाख का बीमा रिस्क कवर देने का दावा करते हैं कई सामान विक्रेता, मोटर विक्रेता भी अपने मोटर के साथ बीमा फ्री जोड़ देते हैं। कुछ पत्रकार संगठनों ने भी पत्रकारों की सदस्यता पर बीमा निशुल्क कर देते हैं। बड़ी चालाकी से काम किया जाता है। बीमा आजीवन नहीं रहता एक साल की अवधि का रहता है उसके बाद न उसका नवीनीकरण किया जाता है न कोई पूछता है। लोगों को इस बात की भी जानकारी नहीं होती की बीमा कितने तरह का होता है और यह बीमा किस स्थिति परिस्थिति में किस को मिलेगा। यदि गांव में मुनादी हो जाए और पंचायत भवन में दस्तावेज लेकर एकत्र होने की बात कही जाए तो किसान तो वैसे भी कुछ न कुछ फायदा है सोचकर दौड़े-दौड़े चले आते हैं। इस तरह के मामलों के प्रकाश में आने के बाद प्रशासन के द्वारा इसकी कड़ाई से जांच की जानी चाहिए तथा यदि यह ठगी का मामला है तो इस पर अपराध दर्ज किया जाना चाहिए अन्यथा इस तरह के लोग हर गली कूचे में हैं जो चिट फंड जैसा करने के लिए ताक में लगे रहते हैं जब ऐसे लोगों पर कार्यवाही नहीं होती तो इनको फलने फूलने में समय नहीं लगता।
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