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Gariyaband: *जंगल में तिखुर के अस्तित्व पर गहराया विलुप्त होने का संकट*

*जंगल में तिखुर के अस्तित्व पर गहराया विलुप्त होने का संकट*


रिपोर्ट --जयविलास शर्मा 


*संरक्षण के लिये तय नहीं कोई जिम्मेदारी,जानकारों का मानना कुछ दिनों बाद नहीं मिलेगा स्वास्थ्य वर्धक तिखुर




गरियाबंद --जब भी जेहन पर उदन्ती अभ्यारण्य का नाम आता है तो यहां पाये जाने वाले स्वास्थ्य वर्धक कंदमूल और जीवनदायिनी जडी-बुटी  का ख्याल आ जाता है। गरियाबंद जिले के जंगल में ऐसा ही एक कंदीय फसल पाया जाता है जिसे यहां के निवास कर रहे लोग तिखुर के नाम से जानते हैं।शरीर के गर्मी हो या कोई व्रत हो दैनिक दिनचर्या में इसके भरपूर उपयोग करते लोगों को देखा गया है कई लाभकारी गुणों वाला तिखुर का अस्तित्व अब ख़तरे में है जानकारों का मानना है वन विभाग और ग्रामीणों के संरक्षण ना होने के कारण जंगल से तिखुर गायब होने लगा है।तिखुर के संरक्षण को लेकर ना तो कभी विभाग ने चिंता की है और ना ही कभी वनांचल क्षेत्र के ग्रामीणों ने इसे बचाने की सोची है।


*उपयोग बढ़ने के साथ शुद्ध तिखुर की होने लगी कमी*


गरियाबंद जिले के उंदती अभ्यारण्य क्षेत्र के तौरेंगा, कोदोमाली,साहेबीनकछार, गौरगांव,बरगांव,गोबरा, सिकासार सहित सौ से वनांचल क्षेत्र के पहाड़ीयों में तिखुर के कंद व्यापक मात्रा में पाया जाता था।शहरी क्षेत्रों में शुद्ध तिखुर की मांग बढ़ने  लगी अब इन क्षेत्रों में तिखुर कंद के पौधे कम देखने को मिल रहे हैं जिसके चलते अब विलुप्त की कगार पर है।वही बाजार में नकली तिखुर का पर्याप्त मात्रा में मिलना उपभोक्ताओं को रास नहीं आ रहा है जानकारों का मानना है जब जंगलो से तिखुर के कंद गायब हो रहे हैं तो खुले बाजार में इसकी व्यापकता कैसे है।


*तिखुर बनाने मेहनत भी कम नहीं इसलिये आदिवासियों की रूचि में कमी*


वनांचल क्षेत्रों में रहने वाले लोग तिखुर के कंद की खोदकर लाते है फिर उस कंद को घिस घिस कर उसके तरल पदार्थ को इकट्ठा करते है जब वह जम जाता है और उपयोगी तिखुर तैयार हो जाता है फिर उसे बाजार में बेचते हैं इस पूरी प्रक्रिया में खूब मेहनत लगता है इसलिये भी इसे तैयार करने में लोगों की रूचि कम होती दिख रही है।जानकारों के अनुसार सरकार इसके तैयार करने को लेकर कोई ऐसी योजना तैयार नहीं की है जिससे वन क्षेत्रों के लोगों में तिखुर तैयार करने को लेकर रूचि बढे।हालंकि कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र समय समय पर वनांचल क्षेत्रों में इसकी खेती करने को बढ़ावा देने जन जागरण कर रही है। क्षेत्र में इन दिनों ओडिशा का तिखुर खपाया जा रहा है।


*वैज्ञानिकों की मानें तो तिखुर हल्दी की एक प्रजाति और लाभकारी है*


राज्य सरकार भले ही 2500 रूपये समर्थन मूल्य में तिखुर की खरीदी कर रही है पर इसके अस्तित्व को बचाने अभी तक किसी भी प्रकार की  ठोस पहल नहीं हुई है।कृषि वैज्ञानिकों का मानना है यह हल्दी की एक प्रजाति है जो शरीर के लिये बहुत ही लाभकारी है इसकी खेती भी आसानी से हो सकता है और इससे खासी आमदानी हो सकती है।

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