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Durgkondal: संस्कृति और परंपरा आदिवासी की पहचान--नाथूराम नरेटी*

*संस्कृति और परंपरा आदिवासी की पहचान--नाथूराम नरेटी*

*कमल सिन्हा सीजी.विजन टीवी दुर्गूकोंदल*


  

दुर्गूकोंदल। ग्राम महेंद्रपुर सटेली में  विश्व आदिवासी दिवस  धूमधाम से मनाया गया। शितला मंदिर में ज्योत प्रजवल्लित कर पूजा अर्चना कि गई।ग्राम गायता दयाराम नरेटी ने कहा प्रकृति के सबसे करीब रहनेवाले आदिवासी समुदाय ने कई क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभाई है. संसाधनों के आभाव में भी इस समुदाय के लोगों ने अपनी एक खास पहचान बनाई है. गीत-संगीत-नृत्य से हमेशा ही आदिवासी समुदाय का एक गहरा लगाव होता है. उनके गीतो-नृत्यों में प्रकृति से लगाव दिखता है.लेकिन मौजूदा समय में आदिवासी समुदाय अपनी भाषा-संस्कृति से विमुख हो रही है. आदिवासियों को अपनी भाषा का संरक्षण और विकास के लिए स्वयं आगे आना होगा. आदिवासी जब तक अपने परिवार, गांव, अपने लोगों के बीच अपनी भाषा में बात नहीं करेंगे, तब तक भाषा का संरक्षण एवं विकास असंभव है. मलयाली, मराठी, बंगाली भाषाओं के तर्ज पर आदिवासी भाषाओं की पढ़ाई एक माध्यम के रूप में स्कूलों में शुरु होनी चाहिए. आदिवासी समाज की लगभग 90 प्रतिशत आबादी गांवो में रहती है. जहां बच्चे हिंदी नहीं जानते. वे मातृ भाषा में पढ़ाई तेजी से सीख पाते हैं. ग्रामीण परिवेश के आदिवासी बच्चों के लिए शुरुआती दौर में हिंदी सीखना और फिर उच्च पढ़ाई के लिए अंग्रेजी में सीखना चुनौतीपूर्ण है. इसलिए धीरे-धीरे उन्हें अधिक रोजगार उन्मुख भाषा द्वारा पढ़ाया जा सकता है. नाथुराम नरेटी ने कहा  किसी भी जगह की परंपरा,संस्कृति की माटी  में रचे बसे, सदियों से क्षेत्र कीपहचान बने लोग हीआदिवासी है.आदिवासी कामतलब ही है,जो आदिकाल सेजगह के वासी

यानी रहने वाले है.माटी के एक एक कण सेजिनकी पहचान हो, जंगल के हर दरख्तो सेजिनका संबध हो. वही आदिवासी आज हमें हमारीसंस्कृति और परंपरा का पहचान कराए।इस अवसर पर छत्तर नरेटी,लालूराम,अगनू बारला,इंदल नरेटी,अनित उयके,अजय सलाम,बजेश्वर नरेटी,जगदीस नरेटी,भानूराम,नरसिंहउयके,रामचरण उयके,अमरसिंह नरेटी,पुन्नूराम नरेटी एवं गांव की महिलाएं उपस्थित रही।

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