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Durgkondal: अखंड सौभाग्य की कामना के लिए सुहागिनों रखा निर्जला व्रत*

*अखंड सौभाग्य की कामना के लिए सुहागिनों रखा निर्जला व्रत*



 दुर्गुकोंदल:आज हरतालिका तीज का व्रत रखा जा रहा है।दुर्गुकोंदल अंचल में बहन को तीज पर्व हेतु मायका लिवा लाने सुबह से ही परिवार वाले दुपहिया, चारपहिया वाहन की भीड़ दिखाई दे रही थी।भीड़ को नियंत्रित करने और किसी भी प्रकार के अनहोनी से बचने पुलिस प्रशासन भी तैनात होकर हेलमेट अनिवार्य, और तीसरी सवारी निषेध का पालन कराने तैनात थी। हरतालिका तीज का दिन बेहद शुभ माना जा रहा है। यह व्रत इस साल 06 सितंबर यानी आज रखा जा रहा है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन का व्रत करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही मनचाहा वर प्राप्त होता है।यह व्रत दुर्गुकोंदल अंचल में भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जा रहा है।हरितालिका तीज को हरतालिका भी कहते हैं। हरतालिका का संबंध भगवान शिव से होता है और हर शिव जी का नाम है इसलिए इसे हरतालिका तीज कहना उपयुक्त होगा। सुहागिन महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती है।हरतालिका तीज पर भगवान शिव और माता पार्वती की मिट्टी से मूर्ति बनाकर पूजा-अर्चना करने का विधान है। मुख्य रूप से यह पर्व मनचाहे और योग्य पति को प्राप्त करने के लिए रखा जाता है।साथ ही इस व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन की मुश्किलें भी दूर होती हैं। इसी दिन हस्तगौरी नामक व्रत को करने का विधान भी है।इसके साथ ही सुदा सुहागन रहने का आशीर्वाद प्राप्त होता है।संजय वस्त्रकार सांस्कृतिक स्रोत केंद्र दिल्ली से प्रशिक्षित ब्याख्याता कहते है कि हरतालिका पूजन के लिए भगवान शिव का बालू रेत और मिट्टी से पार्थिव शिवलिंग बनाया जाता है। इसके बाद चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उन्हें स्थापित किया जाता है। भगवान शिव के ऊपर फुलेरा सजाया जाता है। यह फूल और पत्तियों का बना होता है। कई जगह बांस की चोकरी में तरह- तरह के फूल रखे जाते हैं।हर जगह अलग-अलग रीति-रिवाज से हरतालिका व्रत का पूजन होता है।फुलेरा के नीचे भगवान शंकर,माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित कर अपने पति के दीर्घायु के साथ साथ परिवार के सुख समृद्धि की कामना कर, देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का पूजन किया जाता है। उन्हें फल-फूल, बिल्व पत्र, धतूरा, मिठाई, पांच फल अर्पित करते हैं। मां पार्वती को सुहाग का सामान, कई जगह इसे सुहाग पिटारा भी कहा जाता है, पूजा के बाद सुहाग पिटारा सास या किसी बड़े को दिया जाता है। इसके बाद अगले दिन शिवजी की मिट्टी के पार्थिव शिवलिंग का विसर्जन किया जाता है। प्रदोष काल से पहले-पहले पूजा की तैयारी कर कथा का श्रवण करते है। इस दिन हर पहर में भगवान शिव की पूजा की जाती है। रात को जागरण किया जाता है और अगले दिन पूजा करने के बाद व्रत का पारण किया जाता है।

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