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Mahasamund: यह कैसी कपड़ा फाड़ होली*

*यह कैसी कपड़ा फाड़ होली*


आशीष गुप्ता नर्रा 


            "  मुख मुरली बजाए मुख मुरली बजाए छोटे से श्याम कन्हैया कन्हैया " 



 यह गीत हमें फागुन के महीना में अक्सर सुनने को मिल जाता है हम बात कर रहे हैं प्रेम, उमंग, भाईचारा और उल्हास का पर्व होली की यह ऐसा उत्सव है जिसमें लोग आपनी दुश्मनी एवं वैमनस्यता को भूलाकर आपसी भाईचारा एवं उत्साह से जीवन जीना सिखते हैं, होली के अवसर पर घर गांव से दूर रहने वाले नौकरी पेसा लोग आज अपने घर गांव पहुंचने की भरसक कोशिश करते हैं हर कोई होली अपनी-अपनी जगह अपनी अपनी ढंग व परंपराओं से बखूबी मानता है होली का यह पावन पर्व जहां एक ओर जीवन की एकरसता एवं जड़ता को तोड़ता है वहीं दूसरी ओर मेल मिलाप के भाव के साथ पारस्परिक एकता का भी संदेश देता है आज की भाग - दौड़ की जिंदगी में इस संदेश को और अच्छे से ग्रहण करनी चाहिए जीवन में आगे बढ़ने के लिए बहुत कुछ चाहिए होता है लेकिन यदि उल्हास ना हो तो बहुत कुछ होते हुए भी जीवन रीता सा रह जाता है। मगर उल्हास का क्या यह मतलब है कि होली जैसे पवित्र त्यौहार में शराब पीकर ,भांग खाकर या अन्य नशा एवं हुड़दंग करके त्यौहार का मजा लिया जाए क्या हमें इतना अधिकार मिल चुका है कि हम अपनी बेवकूफी पूर्वक मस्ती और हुड़दंग करके दूसरों के उल्हास में खलल डालें, होली जैसे पवित्र त्यौहार में नशा करके इसकी पवित्रता को अपवित्र करें, नहीं ऐसा कतई नही होली तो रंग - गुलाल पिचकारी खेलते हुए शांति एवं आपसी भाईचारे के साथ मनाने का पर्व है लेकिन विगत दो-तीन वर्षों से यूवाओं में कपड़ा फाड़ होली की होड़-सी लगी है मानो कोई रेस जीत कर शासन से पुरस्कृत होना चाहता है क्या होली का पर्व सभ्यता पूर्वक, सौहार्द पूर्वक केवल रंग गुलाल से नहीं मनाया जा सकता क्या आपसी वैमनस्यता मिटाकर गले मिलकर रंग लगाकर यह त्यौहार नहीं मनाया जा सकता या केवल कीचड़ में लेट कर चीट लगाकर (चीट एक प्रकार का काला तेल होता है) कपड़े फाड़ कर या हूल्लड़ कर के ही होली मनाया जा सकता है।

    हम ही तो अपने समाज को एक सभ्य समाज बना सकते हैं बच्चे आने वाले सभ्य समाज की भावी पीढ़ी हैं मगर हम यह सब कर अपनी समाज को किस ओर ले जा रहे हैं आने वाली पीढ़ी की मनोदशा को किसी और धकेल रहे हैं जरा सोंचिए यह गौर करने वाली चीज है हमें याद रहना चाहिए होली का पर्व दुश्मनी बढ़ाने का नहीं दुश्मनी मिटाने का पर्व है क्या हम इस तरह से कपड़ा फाड़ नशा युक्त गंदी होली मना कर अपनी मित्रता घटा रहे हैं या मित्रता बड़ा रहे हैं यह फैसला तो हमें ही करना है आज के परिवेश में प्राय सभी कुछ न कुछ हद तक तो शिक्षित है ही तो आओ शिक्षा का सही उपयोग करें समाज को शिक्षित बनाएं एवं आने वाले समाज को सभ्य समाज की ओर ले चलें। क्यों न आने वाले समय में होली को सौहार्द पूर्वक केवल रंग गुलाल एवं पिचकारी के साथ सभ्यता पूर्वक मनायें जिससे हमारे एवं हमारे सभ्य समाज के साथ-साथ पूरे गांव एवं शहर की भी प्रसंशा हो।

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