छत्तीसगढ़ के बालोद जिला मे ग्राम कोंहगाटोला के कला मंच पर श्रीमद्भागवत का हो रहा है आयोजन
बालोद:- कला मंच ग्राम कोहंगाटोला में समस्त ग्रामवासी के द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के पांचवॉ दिवस भागवताचार्य श्री जय प्रकाश शुक्ला जी ने दधीचि की कथा प्रसंग का वर्णन करते कहा देवताओं को शस्त्र की आवश्यकता पड़ने पर उन्होंने अपनी हड्डी दान कर दी। दधीचि की नाक से पिनाक धनुष का निर्माण हुआ जिसे भगवान शंकर को समर्पित किया गया, इसी धनुष के भंजन करने के बाद स्वयंवर में माता सीता ने भगवान श्रीराम का वरन किया था । दधीचि के विभिन्न हड्डियों से विभिन्न शस्त्रों का निर्माण हुआ जिसमें वज्र प्रमुख है इंद्र ने राक्षसों के विरुद्ध युद्ध में वज्र का प्रयोग किया । उन्होंने कथा प्रसंग में हिंदू धर्म के संस्कारों का रोचक वर्णन करते कहा, जो बनता है वह बिगड़ भी जाता है, निर्माण और विध्वंस संसार का नियम है। हम सभी प्रारब्ध भोगते हैं । शरीर नश्वर है आत्मा अमर है हमारी मौत होती है तब हमारे शरीर से आत्मा को मुक्ति मिलती है , हमारे कर्म से ही हमारी आत्मा को सुख और शांति की प्राप्ति होती है इसलिये हमें ऐसा कर्म करना चाहिये जिससे हमारी आत्मा को शांति मिले।
दान का महत्व बताते उन्होंने कहा बिटिया को दिया धन दान कहलाता है किसी गरीब को दिया धन को सहयोग कहते हैं इसी को हम सेवा भी कहते हैं। रामायण, भागवत ज्ञानयज्ञ में दिया दान धर्म की सेवा में काम आता है। शरीर ही ब्राह्मण शरीर ही वैश्य और शुद्र होता है। ब्राह्मण को छोड़कर दान पचाने की शक्ति भगवान ने किसी अन्य वर्ण को नहीं दिया। ब्राह्मण को छोड़कर कोई दूसरा ब्राह्मण का कार्य करता है तो उसको मिला दान उसके धर्म को नष्ट कर देता है। दुनिया बनाने वाले महाप्रभु ने जीवन जीने की विधि बनाये हैं नियम संविधान बनाया है, उस संविधान के हिसाब से हमें और आप सबको चलना पड़ता है, जो धर्म अनुरूप चलता है उसी का प्रमोशन होता है और नहीं तो विनाश हो जाता है । मैं ब्राह्मण हूं धर्म सेवा कर रहा हूं तो मेरा फर्ज है मैं किसी का बुरा न करूँ,अपमान ना करूं,किसी की बहन बेटी को बुरी निगाह से न देखूँ,पराई धन सम्पत्ति को हड़पने का प्रयास न करूँ, शराब बीड़ी सिगरेट आदि किसी प्रकार का नशा ना करूं तभी मैं दान ग्रहण करने का अधिकारी हूं। अगर मैं किसी प्रकार का व्यसन करता हूं और दान लेता हूं तो मुझे भगवान धर्म अनुरूप दंड देगा। रामचरित मानस गान श्रीमद्भागवत कथा एवं भगवान के भजन गायन को जीवकोपार्जन का जरिया बना लेता है धन कमाने के लिए धर्म का उपयोग करते हैं धर्म ग्रंथों का उपयोग करता है तो इससे बहुत नुकसान हो सकता है ।
भागवत कथा वर्णन कर रहे हैं महाराज जी ने अपने व्याख्यान में ब्राह्मण क्षत्रिय एवं वैश्य धर्म का सविस्तार वर्णन किया । अपनी बुद्धि का प्रयोग करके धर्म का अनुसरण करें जो ब्राह्मणत्व को प्राप्त होंगे, धर्म से प्राप्त धन का पूरा पूरा प्रयोग जो अपने हित में ही करता है तो अगले जन्म में प्रेत योनि को प्राप्त होता है और अगर कोई ब्राह्मण नहीं है धर्म ग्रंथों के पाठ से व्यवसाय से अगर धन निर्माण करता है तो उसके वंश का विनाश हो जाता है । राजा नहुष की कथा प्रसंग का वर्णन करते भगवताचार्य ने कहा कि इन्द्र बनते ही राजा नहुष ने इन्द्राणी से विवाह का प्रस्ताव रखा, इसपर घबराकर इन्द्राणी ने अपने पति इन्द्र को अपनी समस्या बताई तो उसके पति ने कहा कि जब सप्तर्षि आपकी पालकी ढोकर मेरे घर तक लायेंगे तब मैं आपसे शादी करूंगी, इन्द्र बने राजा नहुष ने बात स्वीकार कर सप्तर्षि से पालकी उठाने का आदेश दिया सप्तर्षि ने पालकी उठा ली जल्दी जाने के चक्कर में पालकी में बैठे नहुष ने सप्तर्षि को जल्दी चलने का बार बार आदेश दिया, इससे पालकी उठाये चल रहे दुर्वाशा ॠषि ने उसे सॉप बन जाने का श्राप दे दिया, जो साधुओं से सेवा करवाता है उसकी इसी प्रकार दुर्गति होती है। आज के कथा प्रसंग में भगवताचार्य जयप्रकाश शुक्ला ने भक्त प्रहलाद की कथा में भगवान के नाम की महिमा का सविस्तार वर्णन किया। कार्यक्रम में परीक्षीत अनूप साहू एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सोमनी साहू एवं शिवराम साहू, कपिल शर्मा, रैन सिंग साहू, गोपाल देवांगन, देवलाल सिन्हा रूप राम सोनकर चम्पालाल देवांगन, नोहर सिन्हा, सियाराम साहू अशोक आकाश सहित ग्राम कोहंगाटोला एवं आस पास के ग्राम के धर्म अनुरागी स्त्री पुरुष बच्चों की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही।
0 Comments