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Belgahana: ग्रामीण आत्मनिर्भर रोजगारी मंच का" खेत से पेट" तक जागरूकता अभियान 5 वां दिन बिलासपुर जिले के कोटा ब्लॉक से होकर अचानकमार अभ्यारण के भीतर निवासरत बाबूटोला गांव में पहुंचा**

 *ग्रामीण आत्मनिर्भर रोजगारी मंच का" खेत से पेट" तक जागरूकता अभियान  5 वां दिन बिलासपुर जिले के कोटा ब्लॉक से होकर अचानकमार अभ्यारण के भीतर निवासरत बाबूटोला गांव में पहुंचा** 


संवाददाता राम प्रताप सिंह की रिपोर्ट......




गरिमा मंच के द्वारा आज की पीढ़ी को मिलेट आनाजों के बारे में समझ बनाने एवं उसके पोषक महत्व को समझाने और खेती करने के बारे में जागरुकता की जा रही है। विदेशों में मिलेट 'सुपरफूड्स' के नाम से बिकता है और भारत में भी मिलेट को सरकार प्रोत्साहित कर रही है जिसके कारण गांवों में धीरे धीरे उत्सुकता बढ़ रही है पंरतु किसानों के साथ मिलेट की आधुनिक खेती के बारे में जानकारी का प्रचार—प्रसार करने की आवश्यकता है। इसकी खेती में क्या दिक्क्तें आती है और सरकार कैसे मदद कर सकती है आदि। गरिमा इन्हीं सभी मुद्दों  को ध्यान में रखते हुए सरकार के साथ समन्वय करते हुए किसानों का प्रशिक्षण आदि आयोजित कर रहा है जिसके कारण गरिमा मंच से किसानों का जुड़ाव हो रहा है। सदियों से हमारे भोजन की थाली में प्रोटीन ,केल्शियम,माइक्रोन्यूट्रिएंट और फाइबर आदि  का आभाव रहा है जो कि कुपोषण के मुख्य कारक है। सदियों से चावल खाते खाते रोज जितना प्रोटीन फाइबर कैल्शियम शरीर को मिलना चाहिए वो नहीं मिल पाता है उसकी पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। हां दूध दही अंडा डालें फल भाजी तेल इत्यादि भी खाना जरूरी है ताकी दैनिक जरूरत पूरी हो लेकिन चावल के बदले लोग मिलेट खाने लगे तो चावल से कहीं ज्यादा पोषक यक्त है। अब तो ये भी रिसर्च में भी आ गया है कि भारत में डायबिटीज मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है और मौजूदा संख्या भी बहुत है।

ऐसे में चवल के बदले कोदो, कुटकी, रागी, सांवा, कंगनी,सांवा जसे पोष्टिक अनाज आपने खाने में शामिल करना बहुत जरुरी हो गया है। कुपोषण कम करने के कुछ उपाय में से यह है भी ध्यान देना चाहिए कि सराकर पीडीएस, मध्याह्न भोजन आंगनबाड़ी में भी मिलेट अनाजों शामिल कर लोगों की तली तक  पहुंचना चाहिए,  फोर्टिफिकेशन आनाज स्थाई उपाय नहीं है। हाँ कुछ साल लग जाएंगे उपभोग की आदत में

लेकिन जिस तरह चावल हमारे खाने में मुख्य रुप से शामिल है, वैसे ही मिलेट अनाजों को  में भी भोजन की थाली में वापस लाने की सक्त जरुत है।

गरिमा मंच इसी श्रृंखला में महिला समूहों के मध्यम से गांव-गांव में जागरूकता अभियान चला रहा जिसमे रसायन रहित मिलेट अनाज एवं देशी किस्म की धान की खेती करने और इन अनाजों को अपने खाने में शामिल करने को प्रोत्साहित कर रहा है। जिससे पोषण विविधता की कमी को पूर्ण किया जा सके। गरिमा का यह  मानना है कि  गांव को सशक्त बनाना है और ग्राम स्वराज की कल्पना को साकार करना है तो गांव आधारित उत्पादों का प्रसंस्करण , श्रेणीकरण, मूल्यवर्धन, और पैकेजिंग आदि गांव में ही करना होगा जिससे गांव में उत्पादक कृषक एवं ग्रामीण महिला बहनों, मजदूर को उनके श्रम और उत्पाद का सही और सम्मान जनक मूल्य मिल सके, और साथ ही गांव आत्मनिर्भरता की तरफ अग्रसर हो, गांव में रोजगार के अवसर बढ़े, उत्पादक से उपभोक्ता का सीधा जुड़ाव स्थापित हो होगा। गरिमा मंच ने गांव आधारित उत्पादन, प्रसंस्करण, पैकेजिंग, और मूल्यवर्धन के  कई उदाहरण कोटा ब्लॉक के आदिवासी बाहुल्य गांवों में स्थापित किये हैं जिसके सार्थक परिणाम रहे हैं। इन्हीं उदाहरणों से सीखकर विस्तार करने की दिशा में गरिमा मंच का अभियान जिले के आदिवासी बाहुल्य गांवों में कई गांवों में पहुंच रहा है  इसी कड़ी में अभियान कोटा ब्लॉक से होते हुए अचानकमार के वन ग्राम बाबूटोला पहुंचा । अभियान के तहत  महिला समूहों के चयनित प्रतिनिधियों ने साथ बैठक कर इस मुहिम के आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी ली गई।  महिला समूहों को मजबूती के लिये नियमित बैठक, बचत, लेखा संधारण, और अध्यक्ष, सचिव की जिम्मेदारी का निर्वहन करना आदि भी बताया गया जिससे सामूहिकता से इस अभियान को पुरजोर तरीके से आगे बढ़ाया जा सके। महिला समूहों को सब्जी बाड़ी लगाने के एवं उससे साल में कितना पैसा बचाया जा सकता है एवं ताजी सब्जी उपलब्धता के साथ साथ पोषणता के महत्व पर भी जानकारी दी गई। इस मुहिम मे जन स्वास्थ्य सहयोग संस्था गनियारी तकनीकि सहायता प्रदान कर रही है साथ गरिमा मंच से जुड़ किसान व महिला समूह एवं गरिमा संमन्वय टीम अभियान को क्षेत्र में संचालित कर रही है।

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