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Durgkondal: बांगाचार (विरान ग्राम-इन्दुल की ऐतिहासिक महत्व)*

 *बांगाचार (विरान ग्राम-इन्दुल की ऐतिहासिक महत्व)* 










दुर्गुकोंदल: 20 जून 2023 उत्तर बस्तर कांकेर जिला से विधान सभा मुख्यालय भानुप्रतापपुर 51 वें कि.मी. पर, दक्षिण पश्चिम दिशा में 26 वें कि.मी. पर तहसील एवं ब्लाक मुख्यालय दुर्गेकोन्दल स्थित है। दुर्गकोन्दल के दक्षिण दिशा में 10 वें कि.मी. पर ग्राम कोदापाखा, पश्चिम दिशा में 02 कि.मी. पर ग्राम बांगाचार स्थित है। बांगाचार से लगभग 07 कि.मी. दूरी पर विरान ग्राम इदुल स्थित है। (2) 1. विरान ग्राम- इंदुल का स्थानीय महत्व :- यह स्थल धार्मिक एवं प्राकृतिक दृष्टि से अनोखा है। 14 वीं सदी से 15 वीं सदी के मध्य कांकेर रियासत में हल्बा आदिवासी बघेल परिवार का वंशज विरान ग्राम इंदुल में निवास करते थे, वहां पर बघेल परिवार का 60 अवशेष मकान मिट्टी एवं पत्थर के टीले आज भी मौजूद है। 2. स्वयं भू अनोखा मूर्ति है, जिसे हम स्थापना कर, कुंवरदेव के नाम से मानते है तथा विनंती अरजी करते है। सच्चे मन से दर्शन मात्र से शारीरिक व मानसिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।3. पुरखों के धरोहर के रूप में दो भाईयों का नहाने का पत्थर अवशेष के रूप में स्थित है। 4. हांथी, घोड़ा, बांधने वाला पत्थर का खम्भा स्थित है, जो हमारे पूर्वजों के बसाहट का प्रतीक चिन्ह है। (3) धार्मिक महत्व :- हल्या आदिवासी बघेल परिवार आदिकाल से प्रकृति के पूजक है, विरान ग्राम- इदुल में माई दंतेश्वरी, बाबा कोठोरी चुंगा देव, आया बम्हनीन डोकरी, जिमींदारीन माता, ठाकुरदेव, कुंवरदेव, भीमादेव, गमावली आदि देवी देवताओं की आदिकाल से परम्परागत तरीके से पूजा अर्चना हमारे द्वारा निरंतर की जा रही है। प्राचीन स्मारकों को शासन प्रशासन से संरक्षण एवं संवर्धन की आवश्यकता है।(5) 1. प्राकृतिक महत्व :- यह विरान ग्राम इंदुल Vव्ही आकार की पहाड़ी है, जिसमें प्राकृतिक झरना पहाड़ के 25 मीटर ऊँचाई और चौड़ाई 04 मीटर से गिरती है, तथा नीचे में चमत्कारिक मत्स्य जल कुंड स्थित है, जल कुंड में भाग्यवश सूप के समान कानों वाली मच्छली का दर्शन होती है, जलकुंड के पास भक्तगण काली चूड़ी एवं सिंदूर चढ़ाकर मनोकामना पूर्ण करते हैं।2. जलकुंड के समीप रक्सा हाड़ा (राक्षस हडडी) स्थित है, रक्सा हाड़ा यंत्र तत्र बिखरा पड़ा है, यह विशाल शीला के रूप स्थित है, इस हाड़ा में विशेष प्रकार की गन्ध आती है, रगड़ने पर हडडी के समान चूरा होता है। 3. पहाड़ के डुवाल (पत्थर का दिवार) में लगभग 400 से 500 के बीच मधुमक्खी (बास ओन्डार) के छते हैं।4. विरान ग्राम इंदुल के पहाड़ में प्रचुर मात्रा में बहुमूल्य वनौषधि एवं जड़ी-बूटी के पौधे पाये जाते हैं, दुर्लभ किस्म के फूल अलौकि प्राकृतिक दृश्य से परिपूर्ण मनोरम स्थल है। आज वर्तमान में शासन-प्रशासन के द्वारा संरक्षण एवं संवर्धन की आवश्यकता है।आज वर्तमान में "हल्बा आदिवासी बघेल परिवार" का वंशज ग्राम बांगाचार में निवासरत हैं।उक्त बातें दामेसाय बघेल द्वारा लिखी गई है जिनहेबराष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव 2022 आदिमजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान नवा रायपुर छत्तीसगढ़ राज्य में जनजातीय साहित्य (कथा, लोकोक्ति काव्य पठन), तथा भारत में जनजातीय भाषा एवं साहित्य का विकास _वर्तमान एवं भविष्य में रिपोर्टियर का निर्वहन, साहित्य, शोध, शिक्षा लोक संस्कृति, समाज सेवा, आदिम संस्कृति, अभिलेखिकरण, समाज उत्थान में प्रशंसनीय, जनजातियों की विशिष्ट परम्परा, रीति - रिवाज, परम्परा ज्ञान, अनुसूचित जनजाति क्षेत्र में शिक्षा एवं संस्कृति के संरक्षण -संवर्धन पर परिचर्चा, परलकोट क्षेत्र में बाढ़ राहत कार्य प्रशंसा, पढ़ना -बढ़ना कार्यक्रम उत्कृष्टता, राष्ट्रीय सेवा योजना, राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय  महात्मा ज्योतिबा फूले शिक्षा मैत्री अवार्ड प्रमाण पत्र एवं स्मृति चिन्ह से सम्मानित किया जा चुका है।दामेसाय बघेल* की इन उपलब्धि पर संकलन कर्ता एवं लेखकगण के पदाधिकारियों  *नंदकुमार बघेल,शिवप्रसाद बघेल,गायत्री बघेल,अखिलेश बघेल,भारत राम भंडारी, सरपंच,गुलाब बघेल शिवलाल बघेल कृपाराम बघेल,अखिलेश बघेल धनाजी बघेल सुनाराम बघेल हिर्दय बघेल प्रेमलाल बघेल मालती, कविता, सुशीला, अहिल्या, राधिका, भुवन बत्ती नोहरू राम बघेल,मिलापराम बघेल* व सदस्यों ने बधाई प्रेषित किया है।

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