*बिरसा मुंडा की जयंती पर ब्याख्यान दिल्ली में आयोजित*
*आदिवासियों का संघर्ष नैसर्गिक जीवन के लिएः मुंडा*
दुर्गूकोंदल ।जनजाति कार्य मंत्रालय भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान के माध्यम से आदि व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन नई दिल्ली में किया गया। बिरसा मुंडा के जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में देश भर के सामाजिक चिंतक, विचारक, लेखक, नेतृत्वकर्ता व शोधार्थी उपस्थित होकर अपने अनुभव साझा किया।
आदि व्याख्यान 2023 के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान की विशेष निदेशक प्रोफेसर नूपुर तिवारी ने बताया कि जनजातीय कार्य मंत्रालय बिरसा मुंडा जी की जयंती को जनजाति गौरव सप्ताह के रूप में पूरे देश भर में मना रहा है जिसके माध्यम से विशेष कार्यक्रम संपादित किये जा रहे हैं, आदि व्याख्यान कार्यक्रम में देशभर के सामाजिक, चिंतक, विचारक लेखक, नेतृत्वकर्ता व शोधार्थियों को अवसर दिया जा रहा है जिन्होंने जनजाति समाज के सांस्कृतिक विरासत, परंपरा, लोकगीत, नृत्य व लोक भाषाओं का संरक्षण व संवर्धन करते हुए उनके सर्वांगीण विकास के लिए कार्य कर रहे हैं ऐसे समस्त विचारकों का अनुभव इस संस्थान के लिए मील का पत्थर साबित होगा कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा ने बिरसा मुंडा के कार्यों का स्मरण करते हुए कहा वे एक ऐसे महानायक हैं जिनका जीवन सदैव हमें प्रेरणा देता है, जल, जंगल, जमीन को बचाने की बात यदि पूरे विश्व में होता है तो सबसे पहले आदिवासियों का नाम आता है, आदिवासियों ने हमेशा अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद किया चाहे सत्ता किसी का रहा हो। आदिवासियों का संघर्ष सत्ता पाने के लिए नहीं अपितु अपने नैसर्गिक जीवन के लिए ही किया। केंद्र सरकार आदि आदर्श ग्राम योजना के तहत आदिवासी गांव के विकास के लिए राशि देगी जिससे उस गांव का सांस्कृतिक, शैक्षणिक व आर्थिक विकास हो सके।
इस अवसर पर अनिल कुमार झा सचिव जनजातीय कार्य मंत्रालय, श्री विभु नायर ओएसडी जनजातीय कार्य मंत्रालय, श्रीमती आर जया अपर सचिव जनजातीय कार्य मंत्रालय, श्री एस एन त्रिपाठी महानिदेशक भारतीय लोक प्रशासन संस्थान व विशेष उपस्थिति पद्मश्री श्री जनुम सिंह साय, पद्मश्री श्रीमती उषा बारले तथा विनय यादव, आशा किरण, दीप्ति अरोरा की रही।
आदि व्याख्यान के द्वितीय सत्र में आदिम भाषाओं के संरक्षण व संवर्धन विषय पर अपनी बात रखते हुए छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व कर रहे ललित नरेटी ने कहा कि भाषाओं की विविधता भारत की खूबसूरती है, अलग-अलग भाषा बोलने के बाद भी भारत में सांस्कृतिक एकता है। लोकभाषा जमीनी अपनत्व को प्रदर्शित करता है, भाषा किसी भी संस्कृति को बचाने का मजबूत माध्यम है जब भाषा,संस्कृति बचेगा तब ही प्रकृति बचेगी।
आगे उन्होंने गोंडी भाषा और प्रकृति के जीव-जन्तुओं के बीच अंतर्संबंधों को विस्तारपूर्वक बताया तथा प्रदेश में लोकभाषाओं के संरक्षण व संवर्धन हेतु किये जा रहे प्रयासों पर भी प्रकाश डाला।
ललित नरेटी ने अपने वक्तव्य में गोंडी भाषा को संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल करते हुए उसके संरक्षण व संवर्धन की पहल करने की मांग रखी।
इस अवसर पर मंच में सभापति के रुप में प्रोफेसर डॉ. रमेशचंद्र गौर, डीन आईजीएनसीए दिल्ली, प्रोफेसर डॉ. मिनाकेतन बेहरा जेएनयू दिल्ली, प्रोफेसर डॉ. जनार्दन गोंड इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रोफेसर डॉ. रोशन प्रवीण खलखो रांची विश्वविद्यालय, प्रोफेसर डॉ. किरण नुरुटी बस्तर विश्वविद्यालय सहित मणिपुर, सिक्किम, असम, राजस्थान, उड़ीसा, झारखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार व दिल्ली के लोग उपस्थित थे।
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