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Balod: 11वीं सदी का पौराणिक स्थल माना जाता है गौरैया मेला चौरेल

बालोद -सिकोसा 

लोकेशन गौरैया धाम पैरी

तारीख 08/02/24



11वीं सदी का पौराणिक स्थल माना जाता है गौरैया मेला चौरेल

,,, तांदुला नदी के किनारे प्रत्येक वर्ष माघ पूर्णिमा पर लगता है विशाल मेला

,, इस वर्ष का मेला 23 व 24 फरवरी को, आयोजन की तैयारी जोरों पर 



बालोद। जिले के गुंडरदेही विकासखंड के ग्राम चौरेल स्थित गौरैया धाम परिसर को जानकार लोग 11वीं सदी का पौराणिक स्थल मानते हैं। जहां पर गौरैया धाम है वहां पर का स्थान एक टीलानुमा है। तांदुला नदी के बिल्कुल किनारे स्थित इस टीले की खुदाई करने पर देवी देवताओं की मूर्तियों के अलावा अनेक तरह के सिक्के व पौराणिक वस्तुएं भी निकालते हैं। इसीलिए इस स्थान से जुड़े बुजुर्गों का कहना है कि यहां किसी समय राजा महाराजाओं का वास राजा होगा। इसी गौरैया धाम के नाम से यहां पर सदियों से माघ पूर्णिमा पर गौरेया मेला लगता आ रहा है।

   पैरी और चौरेल के बीच तांदुला नदी के दोनों किनारे लगने वाले गौरैया मेला की तैयारी इस बार पूरे जोश खरोश के साथ चल रही है। आयोजन हालांकि यहां पर 21 फरवरी से होगा, लेकिन मुख्य आयोजन तीन दिवसीय है जिसमें 22 23 और 24 फरवरी को पैरी, चौरेल और मोहलई पार में विविध आयोजन किए गए हैं। यह एक पौराणिक स्थल है। इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस जगह पर गौरैया धाम स्थित है वहां जाने पर अपने आप श्रद्धालुओं को सुकून मिलता है। ऐतिहासिक महत्व की मूर्तियां आज गोरिया धाम परिसर में रखी गई है। ये मूर्तियां कहीं बाहर से नहीं लाई गई है, बल्कि यहीं पर बावली की खुदाई और मंदिर निर्माण के लिए नीम की खुदाई के दौरान निकली है। पहले इन मूर्तियों को सहेज कर नहीं रखा जाता था और कई लोग छोटी-छोटी मूर्तियों को यहां से उठा कर ले भी गए हैं। जब से न्यास श्री गौरैया सिद्ध शक्तिपीठ संस्था बनी है उसके बाद से मूर्तियों को सहेजना प्रारंभ हुआ और अब तक यहां खुदाई से निकली 143 मूर्तियों को सुरक्षित कर रखा गया है। यहां स्थित शिव लिंग को ज्योर्लिंग की तरह माना जाता है जो जमीन के नीचे है। जैसे अन्य ज्योतिर्लिंगों में होता है। इसीलिए इसका विशेष महत्व है और हर रोज यहां लोग मन्नत मांगने और पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं।


 महाराष्ट्र से कुछ समाज के लोग यहां आते हैं 

मेला स्थल पर महाराष्ट्र के भोंगारे समाज के लोगों का भी यहां प्रत्येक मेला में आना होता है। उनका यहां पर मंदिर भी है। वे यहां आकर पूजा अर्चना करते हैं। उनका कहना है कि यहां पर कई साल पहले से उनके पूर्वज आते हैं और यहां उनके इष्ट देव का वास है। इसीलिए समाज के कई लोग मेला के अवसर पर यहां पहुंचते हैं।


कई समाज के लोगों का बना हुआ है सामाजिक भवन

 मेला स्थल का महत्व कितना है इस बात का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यहां पर निषाद समाज, गोड समाज, कबीर समाज, सतनामी समाज का सामुदायिक भवन बना हुआ है। यह भवन आज बने हैं ऐसा नहीं है कई सालों पहले से बने हैं। यहां के लोग बताते हैं कि पहले मेला के दौरान इन सब समाज के लोग काफी संख्या में आते थे और अपने-अपने सामाजिक गतिविधियां भी संपन्न करते थे और यहां रुकते थे। देवी देवताओं का दर्शन लाभ लेते थे और तंदुला नदी में स्नान कर पुण्य लाभ लेते थे, वहीं अब धीरे-धीरे समाज के लोगों का आना काम हुआ है लेकिन अभी भी समाज के प्रमुख लोग आकर पूजा अर्चना जरूर करते हैं।


हर वर्ष पहुंचते हैं लाखों श्रद्धालु 

गौरैया मेला प्रत्येक वर्ष माघ पूर्णिमा पर आयोजित होता है। यहां पर आसपास के दो दर्जन से ज्यादा गांव में उत्सव का माहौल होता है। उस दिन गांव में त्यौहार मनाया जाता है और प्रत्येक गांव में प्रत्येक घरों में दूर-दूर से मेहमान आते हैं। लोग इसे अपनी खुशनसीबी मानते हैं और मेहमानों का भी खूब आव भगत करते हैं। मेला में लगभग 5 लाख लोगों के आने का अनुमान पिछले बार लगाया गया था। खासियत यह है कि इस मेले के दूसरे दिन भी बासी मेला लगता है। वहां भी लाखों रुपए की बिक्री होती है। बताया जाता है कि कुछ मेहमान तो ऐसे हैं जो इसी दिन का ही इंतजार करते रहते हैं। और मेला में अनिवार्य रूप से पहुंचते हैं। श्रद्धा की बात यह है कि आसपास के दो दर्जन से ज्यादा गांव के लोग इस समय श्रद्धामय माहौल में रहते हैं और प्रत्येक मेहमानों का दिल से स्वागत करते हैं। कई गांव में तो इसी दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन होता है।


विजन टीवी चैनल के लिए संवाददाता रूपचंद जैन बालोद ब्यूरो चीफ दीपक देवांगन के साथ

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