*हरेली पर धरती माता और प्रकृति का आभार जताएंगे किसान_संजय*
दुर्गुकोंदल। छत्तीसगढ़ का प्रमुख त्योहार है जो मुख्यतः खेती-किसानी से जुड़ा होता है। हरेली का मतलब होता है “हरियाली” जो हर वर्ष सावन माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। इसे “हरियाली अमावस्या” के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष हरेली 4 अगस्त को मनाई जाएगी।संजय वस्त्रकार ब्याख्याता के अनुसार हरेली त्यौहार के पहले किसान अपनी फसलों की बोआई या रोपाई कर लेते हैं और इस दिन कृषि संबंधी समस्त औजार (नागर, गैंती, कुदाली, फावड़ा आदि) की साफ-सफाई करने के बाद उन्हें एक स्थान पर रखकर धरती माता एवं कृषि यंत्रो की पूजा-अर्चना कर,भरण पोषण के लिए धरती माता का आभार व्यक्त करते हैं।गांव के ठाकुर देव की पूजा की जाती है और उनको नारियल अर्पण किया जाता है।इस दिन महिलाएं खासकर छत्तीसगढ़ी व्यंजन, जैसे कि गुड़ का चीला, बनाती हैं। युवा और बच्चे गेड़ी चढ़ने का मजा लेते हैं,इसलिए, सुबह से ही घरों में गेड़ी बनाने का काम शुरू हो जाता है।
मान्यताएं :- इस दिन बैगा हर घर के मुख्य द्वार पर नीम की पत्ती लगाते है और लोहार घर के चौखट में कील ठोंककर आशीष देते है कहते है कि ऐसा करने से उस घर में रहने वालों की अनिष्ट से रक्षा होती है। इसके बदले में प्रत्येक घर से उन्हे दान स्वरूप स्वेच्छा से दाल, चावल, सब्जी और नगद राशि प्राप्त होती हैं।
पालतू पशु जैसे बैल,गाय और भैंस को बीमारियों से बचाने के लिए आंटे की लोई को बगरंडा और नमक के साथ खिलाने की परंपरा है।हरेली पर्व पर किसान कुल देवताओं और कृषि औजार की पूजा कर अच्छी फसल की कामना करते हैं।
किसान अपने खेतों और फसलों को धूप, दीप और अक्षत से पूजा करते हैं,पूजा में भिलवा वृक्ष की पत्तियों, टहनियों और दशमूल (एक प्रकार का कांटेदार पौधा) को विशेष रूप से खड़ी फसल में लगाया जाता है और उसकी पूजा की जाती है।इससे फसल में होने वाले कई तरह के हानिकारक कीड़ों और बीमारियों से फसल की रक्षा होतीहैप्रतियोगिता_हरेली पर्व पर गेड़ी दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन,बैल दौड़ प्रतियोगिता, नारियल फेक प्रतियोगिता,कुश्ती आदि की प्रतियोगिता आयोजित किये जाते है।
0 Comments