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Rajnandgaon: सेवा-सुशासन के 11 वर्ष: क्या अंतिम पंक्ति तक पहुँचा विकास?"कमलेश स्वर्णकार,

लोकेशन - राजनांदगांव 

रिपोर्टर अनिल सिन्हा,

सेवा-सुशासन के 11 वर्ष: क्या अंतिम पंक्ति तक पहुँचा विकास?"कमलेश स्वर्णकार,

 जब कोई सत्ता अपने कार्यकाल के 11 वर्षों को ‘सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण’ जैसे बुलंद नारों के साथ उत्सव के रूप में मनाती है, तब एक पत्रकार होने के नाते मेरा दायित्व बनता है कि मैं सिर्फ तालियाँ नहीं बजाऊँ, बल्कि उन तालियों के पीछे छिपी चुप्पियों को भी उजागर करूँ। क्या सचमुच शासन-प्रशासन ने गरीब की झोपड़ी तक राहत पहुँचाई है? क्या वाकई सुशासन ने गांव, मजदूर, किसान, और बेरोजगार नौजवान के जीवन को संवारा है? मेरे प्रश्न किसी विपक्षी भाव से नहीं, बल्कि जन-सरोकार की पीड़ा से जन्मे हैं।

सुशासन का अर्थ मात्र योजनाएं बनाना नहीं होता, बल्कि उनका निष्पक्ष और प्रभावी क्रियान्वयन ही असली पहचान है। जब आज भी स्कूलों में शिक्षक नहीं, अस्पतालों में दवाइयाँ नहीं, राशन दुकानों में ईमानदारी नहीं और थानों में पीड़ितों की सुनवाई नहीं, तब यह जश्न एक आत्ममुग्धता से अधिक कुछ नहीं लगता। मेरी कलम ने बार-बार यह लिखा कि ‘जन कल्याण’ की असल तस्वीर गांवों के टूटी सड़कों, सूखे हैंडपंपों और फटे राशन कार्डों में छिपी है।



मैंने हाल ही में देखा कि अनेक वृद्ध अपनी पेंशन के लिए महीनेभर दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, विधवा महिलाएं पात्र होते हुए भी आवास योजना से वंचित हैं और कई किसान कर्ज के बोझ में आत्महत्या की कगार पर हैं। क्या यही गरीब कल्याण है? डिजिटल इंडिया के दौर में, आज भी सैकड़ों गांवों में नेटवर्क नहीं है, जिससे लोगों को योजना से जोड़ना दूर की बात हो जाती है।


आज जरूरत है कि शासन तंत्र आत्मावलोकन करे। आंकड़ों और उद्घाटनों से इतर यदि किसी गरीब का जीवन नहीं बदला, तो सारा विकास सिर्फ एक दिखावा है। मैंने कई बार अनुभव किया है कि जब कोई आम नागरिक, जो शासन से उम्मीद लेकर आता है, उसे बार-बार निराशा मिलती है, तो वो लोकतंत्र से ही विश्वास उठाने लगता है। यही सबसे बड़ा खतरा है।


मेरा उद्देश्य किसी विशेष दल या नेता की आलोचना नहीं, बल्कि एक सजग प्रहरी के रूप में प्रशासन को जगाना है। यदि शासन वास्तव में सेवा और सुशासन का सपना साकार करना चाहता है, तो उसे हर गरीब, किसान, महिला, दिव्यांग और छात्र की आंखों में उम्मीद की रौशनी लानी होगी। जब आखिरी पंक्ति का व्यक्ति कहे – “अब मैं भी देश की तरक्की का हिस्सा हूँ” तभी 11 साल का यह उत्सव सार्थक कहलाएगा।

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