*दुर्गूकोंदल में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती मनाई: भाजपा कार्यकर्ताओं ने किया नमन,कहा राष्ट्रीय एकता के लिए किया काम
*राष्ट्रसेवा और समर्पण की प्रेरणा देता है डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी की जीवनी- राजु नायक*
दुर्गूकोंदल | भाजपा मंडल दुर्गूकोंदल ने रविवार को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर उनको किया गया याद जिसमें मुख्य रुप से जनपद सभापति विकास राजु नायक, पंचायत प्रकोष्ठ जिला संयोजक विजय पटेल, पिछड़ा वर्ग मोर्चा जिला उपाध्यक्ष अशोक जैन, मंडल महामंत्री रामचंद्र कल्लो, तुका पटेल, तुलसी मतलामी, बीरेंद्र जैन, सोमल जैन, पुनारद दास मानिकपुरी सहित भाजपा नेता शामिल हुए | और श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी को याद करतें हुए कहा कि भारत की एकता एवं अखंडता के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले, प्रखर राष्ट्रवादी विचारक, महान शिक्षाविद, जनसंघ के संस्थापक एवं हमारे पथ प्रदर्शक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन। अखंड भारत के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले, राष्ट्रवाद के प्रणेता, जनसंघ के संस्थापक एवं महान शिक्षाविद डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर शत्-शत् नमन। गौरतलब है कि शिक्षाविद्, चिन्तक एवं भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म छह जुलाई 1901 में कोलकाता में हुआ था। वे प्रखर मेधा और प्रबल नेतृत्व क्षमता के धनी होने के साथ-साथ एक सच्चे देशभक्त थे। भारत की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने में उनका योगदान बहुत बड़ा है। राष्ट्र की एकता के लिए उनका दृढ़ संकल्प और उनका बलिदान हमेशा याद रखा जाएगा।उनका जीवन देश निर्माण के लिए समर्पित लोगों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। अपने प्रखर राष्ट्रवादी विचारों और कार्यों से माँ भारती को गौरवान्वित करने वाले महान विचारक, करोड़ो कार्यकर्ताओं के प्रेरणापुंज, विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी के आधार स्तम्भ डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी की जन्म-जयंती पर उन्हें भावपूर्ण नमन करता हूँ। जम्मू-कश्मीर से दो विधान, दो निशान और दो प्रधान समाप्त करने के लिए श्रद्धेय डॉ. मुखर्जी जी अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक संघर्षरत रहे। अगस्त 1952 में जम्मू कश्मीर की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि ''या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूंगा''। डॉ. मुखर्जी अपने संकल्प को पूरा करने के लिये 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहां पहुंचते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 23 जून 1953 को जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। जेल में उनकी मृत्यु ने देश को हिलाकर रख दिया और परमिट सिस्टम समाप्त हो गया। उन्होंने कश्मीर को लेकर एक नारा दिया था, नहीं चलेगा एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान कश्मीर से धारा-370 हटाकर उनके स्वप्न को प्रधानमंत्री नरेंद्र के नेतृत्व में हमारी सरकार ने साकार किया है। माँ भारती की एकता, अखंडता और सम्मान के लिए दिया गया आपका अमर बलिदान अनंतकाल तक देशवासियों को राष्ट्रसेवा और समर्पण की प्रेरणा देता रहेगा| पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अंतरिम सरकार में उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में शामिल किया। नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच हुए समझौते के पश्चात 6 अप्रैल 1950 को उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर-संघचालक गुरु गोलवलकर जी से परामर्श लेकर श्री मुखर्जी ने 21 अक्टूबर 1951 को राष्ट्रीय जनसंघ की स्थापना की। 1951-52 के आम चुनावों में राष्ट्रीय जनसंघ के तीन सांसद चुने गए जिनमें एक डॉ. मुखर्जी भी थे। तत्पश्चात उन्होंने संसद के अन्दर 32 लोकसभा और 10 राज्यसभा सांसदों के सहयोग से नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी का गठन किया। डॉ. मुखर्जी भारत की अखंडता और कश्मीर के विलय के दृढ़ समर्थक थे। उन्होंने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को भारत के बाल्कनीकरण की संज्ञा दी थी। अनुच्छेद 370 के राष्ट्रघातक प्रावधानों को हटाने के लिए भारतीय जनसंघ ने हिन्दू महासभा और रामराज्य परिषद के साथ सत्याग्रह आरंभ किया। डॉ. मुखर्जी 11 मई 1953 को कुख्यात परमिट सिस्टम का उलंघन करके कश्मीर में प्रवेश करते हुए गिरफ्तार कर लिए गए। गिरफ्तारी के दौरान ही विषम परिस्थितियों में 23 जून, 1953 को उनका स्वर्गवास हो गया। आज हम एक दक्ष राजनीतिज्ञ, विद्वान और स्पष्टवादी के रूप में वे अपने मित्रों और शत्रुओं द्वारा सामान रूप से सम्मानित थे, एक महान देशभक्त और संसद शिष्ट के रूप में भारत उन्हें सम्मान के साथ याद करते हुए उन्हें नमन करतें है।
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