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Mahasamund: धर्मांतरण कर ईसाई बन चुके आदिवासियों को 2026- 27 की जाति जनगणना में डी-लिस्ट कर आरक्षण से बाहर किया जाए – भीखम सिंह ठाकुर

 धर्मांतरण कर ईसाई बन चुके आदिवासियों को 2026- 27 की जाति जनगणना में डी-लिस्ट कर आरक्षण से बाहर किया जाए – भीखम सिंह ठाकुर 


महासमुन्द ब्यूरो रिपोर्ट 



जिला पंचायत उपाध्यक्ष भीखम सिंह ठाकुर ने आज प्रेस विज्ञप्ति जारी कर केंद्र एवं राज्य सरकार से अपील की है कि 2026- 27 में होने वाली जातीय जनगणना में धर्मांतरण कर ईसाई बन चुके आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी से डी-लिस्ट (विलोपित) किया जाए एवं उन्हें आरक्षण सहित सभी संवैधानिक सुविधाओं से वंचित किया जाए।

         ठाकुर ने कहा कि संविधान द्वारा प्रदत्त अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा और उससे मिलने वाले लाभ केवल उन लोगों के लिए है जो अपनी मूल परंपरा, संस्कृति और आस्था से जुड़े रहते हैं। लेकिन वर्षों से धर्मांतरण के माध्यम से आदिवासी समुदाय में जबरन और छलपूर्वक बदलाव कर उन्हें ईसाई बनाया जा रहा है, जिससे समाज में सांस्कृतिक असंतुलन और आर्थिक-राजनैतिक विसंगतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।

        उन्होंने कहा कि आरक्षण का लाभ उन्हीं को मिलना चाहिए जो वास्तव में उपेक्षित और वंचित हैं। लेकिन आज बड़ी संख्या में ऐसे लोग जो ईसाई धर्म स्वीकार कर चुके हैं, वे भी आदिवासी की श्रेणी में बने रहकर दोहरा लाभ उठा रहे हैं। यह न केवल संविधान की भावना के खिलाफ है, बल्कि मूल आदिवासी समाज के साथ अन्याय भी है।

 भीखम सिंह ठाकुर ने इस गंभीर विषय को उठाते हुए कहा कि अब समय आ गया है जब सरकार को "डीलिस्टिंग कानून" बनाकर  जातीय जनगणना में इन लोगों को स्पष्ट रूप से अलग कर देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि इस मांग को लेकर देशभर में लंबे समय से संघर्ष हो रहा है और कई राष्ट्रवादी संगठनों एवं जनप्रतिनिधियों ने इसे वर्षों पहले उठाया था।

उन्होंने बाबा कार्तिक उरांव जो कि झारखंड के सांसद और आदिवासी नेता रहे हैं ,का उल्लेख करते हुए कहा कि बाबा कार्तिक उरांव ने 1967–70 के बीच संसद में स्पष्ट रूप से यह कहा कि जिन्होंने ईसाई धर्म ग्रहण किया है, उनको (अनुसूचित जनजाति में) सूचीबद्ध नहीं किया गया है, और ना ही (अनुसूचित जनजाति में) सूचीबद्ध किया जा सकता है।”

उन्हें जनजातियों के आरक्षण-संरक्षण से वंचित होना चाहिए, *क्योंकि ईसाई या इस्लाम धर्म* अपना लेने के बाद उनका सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक जुड़ाव मूल जनजाति से टूट जाता है  .

बाबा कार्तिक उरांव ने इस मुद्दे पर 1969 में संसद की संयुक्त समिति को अपनी बात प्रस्तुत की, जिसने 17 नवंबर 1969 को इसे स्वीकार करने की सलाह दी  .

जब तत्कालीन केंद्रीय कांग्रेस सरकार (इंदिरा गांधी नेतृत्व) ने इसे रोकने का प्रयास किया, तो बाबा कार्तिक उरांव ने 10 नवंबर 1970 को 348 सांसदों के हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सौंपा, जिसमें उन्होंने अंतिम रूप से आग्रह किया कि धर्मांतरण करने वालों को ST सूची से बाहर रखा जाए  ठाकुर ने कहा कि छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी बहुल राज्य में यह समस्या अत्यंत गंभीर रूप ले चुकी है। सरकार को चाहिए कि वह प्रत्येक धर्मांतरित व्यक्ति का स्वतंत्र सत्यापन करे और ऐसे लोगों को आरक्षण सूची से तत्काल हटाया जाए। इससे न केवल सामाजिक न्याय सुनिश्चित होगा, बल्कि आदिवासी समाज को उनका वास्तविक हक और पहचान भी प्राप्त होगी।

     उन्होंने यह भी संकेत दिया कि आने वाले दिनों में वे इस विषय पर ज्ञापन सौंपेंगे और एक जन अभियान की शुरुआत करेंगे, जिससे जनजागरूकता फैले और यह मांग जन आंदोलन का रूप ले सके।

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