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Durgkondal: *एक सप्ताह के बाद भी उच्च न्यायालय के अंग्रेजी में लिखे आदेश को नहीं समझ पाया शिक्षा विभाग*

 *एक सप्ताह के बाद भी उच्च न्यायालय के अंग्रेजी में लिखे आदेश को नहीं समझ पाया शिक्षा विभाग*

दुर्गुकोंडल ।15 नवंबर 2023



शिक्षक पदोन्नति  निरस्तीकरण से संबंधित मामले में शिक्षा विभाग द्वारा रोज नए-नए और कारनामे और अधिकारियों की मनमानी यथावत जारी है। एक ओर जहां 03/11/2023 को न्यायालय ने सुनवाई के बाद 07/11/2023 को जारी किए अपने आदेश में शिक्षकों की वेतन की समस्या को हल करने के लिए समस्त संशोधन प्रभावित शिक्षकों को पूर्व की शाला में जॉइनिंग करने का आदेश शिक्षा विभाग को दिया। किंतु आज एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी समस्त संशोधन प्रभावित शिक्षकों की पूर्व की शाला में वापसी नहीं हो पाई है और ना ही शिक्षकों को वेतन मिला है। जहां करीब 20% शिक्षक पूर्व की शाला यानी (कार्य मुक्त होने के पहले जहां से उन्हें अंतिम बार वेतन प्राप्त हुआ था) उस संशोधित शाला में ज्वाइन कर चुके हैं। वहीं 80% से अधिक शिक्षक ऐसे हैं, जिन्हें आज तक इस वजह से कार्यभार नहीं ग्रहण कराया गया है, क्योंकि शिक्षा विभाग के अधिकारियों को उच्च न्यायालय के 07/11/2023 के अंग्रेजी में लिखें आदेश के वे बिंदु तो समझ में आ गए हैं, जिनमें शासन के पक्ष की बातें यानी कमेटी द्वारा जांच एवं अभ्यावेदन से संबंधित बातें लिखी हुईं हैं। जबकि कार्यभार ग्रहण कराने एवं वेतन प्रदान किए जाने के संबंध में लिखे बिंदु, एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी अधिकारियों की समझ से परे हैं। जबकि इसी आदेश के अंतर्गत यह भी लिखा हुआ है की शासन द्वारा जारी किया गया 04/09/2023 का निरस्तीकरण आदेश गलत तरीके से एवं गलत तथ्यों के साथ जारी किया गया है, इसीलिए उच्च न्यायालय ने उक्त 04/09/2023 के आदेश को ही निरस्त कर दिया था। साथ ही शासन द्वारा एकतरफा भारमुक्त करने की कार्रवाई को अनुचित बताया है। अतः यह स्पष्ट है कि यदि 04/09/2023 का आदेश निरस्त किया गया है, तो सभी शिक्षकों की वापसी 04/09/2023 के पूर्व वह जिस संस्था में कार्यरत थे, वहां हो जानी चाहिए। किंतु जानबूझकर अधिकारी भ्रम की स्थिति निर्मित कर रहे हैं और ना ही अब तक शिक्षा विभाग द्वारा इस संबंध में कोई स्पष्ट आदेश निकाला गया है। दो दिन पहले  महाधिवक्ता की ओर से शासन के पक्ष में एक अभिमत देते हुए यह बताया गया है, कि महाधिवक्ता के अनुसार पूर्व की संस्था का आशय पदोन्नत/काउंसलिंग संस्था से है, ना कि संशोधित संस्था से। जबकि उक्त अभिमत केवल उन तीन चार याचिकाकर्ताओं के मार्गदर्शन के परिपेक्ष में है, जो आज तक संशोधित संस्था से भार मुक्त ही नहीं किए गए थे। अब देखना यह है की क्या शासन ऐसे शिक्षक जो की भारमुक्त ही नहीं हुए थे, उनके संबंध में मांगे गए मार्गदर्शन को क्या उन समस्त शिक्षकों के लिए भी आदेश के रूप में प्रसारित करता है, जो की भारमुक्त किये जा चुके थे, एवं जिनके लिए पूर्व की संस्था का अर्थ संशोधित संस्था से है, जहां से अंतिम बार वेतन प्राप्त हुआ था। शिक्षा विभाग एवं महाधिवक्ता द्वारा पदोन्नत/कॉउंसिलिंग संस्था को पूर्व की संस्था किस आधार पर कहा जा सकता है, जबकि किसी भी संशोधन प्रभावित शिक्षक ने उक्त पदोन्नत / काउंसलिंग संस्था में कभी कार्यभार ग्रहण ही नहीं किया है। अब स्थिति यह है कि यदि माननीय न्यायाधीश यदि पुनः उक्त आदेश की व्याख्या करते हुए पूर्व की शाला का अर्थ बता पाएं तब ही जाकर शिक्षकों या शिक्षा विभाग को स्पष्ट हो पायेगा कि पूर्व की संस्था असल में है कौन सी?

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