*तीन गांव तीन परम्परा कहीं यज्ञ के राख तो कहीं गुलाल अबीर से खेली जाती है सूखी होली*
*गांव में मांस मदिरा की नही होती छुट भजन पूजन संकीर्तन गांव की बन गयी है पहचान
गरियाबंद--गरियाबंद का तीन गांव ऐसा जहां होली पर हुड़दंग नहीं होता गांव में होली के तीन दिन पहले से मांस मदिरे पर प्रतिबंध लग जाता है ये कोई सरकारी आदेश से नहीं होता बल्कि गांव का अपना फैसला होता है।गांव के बुजुर्ग से लेकर युवा तक इस फैसले का परिपालन कर गांव में सनातन का अलख जगाते हैं।
*गांव नंबर पहला*-- *कांडसर*
मैनपुर के कांडसर जहां बाबा उदयनाथ का आश्रम है यहां 18 वर्षो से बाबा गौशाला भी चलाते हैं बाबा के चार हजार से अधिक अनुयायी है और इन 18 वर्षो से विश्व शांति ब्रम्ह यज्ञ की एक परम्परा चली आ रही है इस यज्ञ में हर साल गौमाता मुख्य अतिथि तो वहीं अलग अलग वर्षों में अलग अलग जीवजन्तु अतिथि बनाये जाते है फिर यज्ञ के पांचवें दिन समापन होली के दिन होता है और इसी दिन यज्ञ के भभूत से होली खेली जाती है।
*दूसरा गांव--सीनापाली*
देवभोग का सीनापाली गांव सुखी होली खेलने को लेकर क्षेत्रभर में अपनी पहचान बनाया है।यहां भी होली के तीन दिन पहले से गांव में संकीर्तन अर्थात अर्थात अष्ट प्रहरी का आयोजन होता है गांव में मांस मदिरा सेवन पर पूर्ण प्रतिबंध होता है संकीर्तन के समापन के दिन होली के अवसर पर अबीर गुलाल से सुखी होली यहां की 35 वर्षों की परम्परा बन गयी है।गांव के बुजुर्ग पटेल, शंकरलाल सोनी, सुधीर अग्रवाल,इस प्रकार के आयोजन को लेकर कहते हैं गांव में 35 वर्ष पहले होली के अवसर पर हुड़दंग, मारपीट और अन्य आपराधिक घटनाएं घटित होता था तब से पहले के बुजुर्गो ने गांव में संकीर्तन के धार्मिक आयोजन कराकर एक अनोखी परम्परा को चलाया जो अब तक चल रहा है।
*तीसरा गांव --खजुरपदर*
मैनपुर के खजुरपदर गांव भी मदिरा सेवन के नाम से बदनाम से क्षेत्र में जाना जाता था । होली पर हुड़दंग ना हो आपराधिक गतिविधियां ना हो ऐसा कभी ना होता था पर गांव के बुजुर्ग और पढ़ें लिखे युवकों ने इसमें सुधार लाने एक मुहिम छेड़ा जिससे यहां आपराधिक गतिविधियां कम हो गयी।और गांव में होली पर हुड़दंग भी नहीं होता।वही इस गांव के आदिवासी लोग आज भी पलंग या खाट पर नही सोते वो इसलिये की जो भी पलंग या खाट पर सोया है उसके घर विपत्तियो का अंबार होता है ।
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