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Balod: बालोद जिले के बालोद शहर में गौ माता हो रही लगातार सड़क दुर्घटना का शिकार शाशन प्रशासन मौन

लोकेशन बालोद 

संजय कुमार 


बालोद जिले के बालोद शहर में गौ माता  हो रही लगातार सड़क दुर्घटना का शिकार शाशन प्रशासन मौन 



आपको बता दे पूरी घटना जो है बीती रत की है. समय लगभग रात्रि 1 से 2 बजे के बिच की बताई जा रही. जिसमे दुर्ग से दल्ली जाने वाले मुख्य मार्ग बालोद ठीक आमापारा पुलिया से पहले रोड किनारे बैठें गौमाता पर अज्ञात वाहन द्वारा बैठें हुई गौमाता पर गाड़ी चला दिया जाता है.जिसमे 7 गौमाता हरीशरण हो गयी और 1 गंभीर रूप से घायल हो गयी.  गौ रक्षक  अजय यादव को जैसे हि इसकी जानकारी मिली वह फ़ौरन घटना स्थल पर पहुंच हरीशरण हुई गौ माता को श्रद्धांजलि अर्पित की और घायल गौ माता का उपचार कराया. इन्होने अपना काम तो कार दिया. लेकिन क्या शासन प्रशासन के तरफ से बेज़ुबान के बचाव और उनके रख रखाव पर किसी प्रकार का कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा. गौठान तो है लेकिन नाम मात्र हि रह गए. गौठान की स्थिति वहां का रख रखाव भी आज कल किसी से छिपा नहीं. 

सरकार की नरवा गरवा घूरवा  बारी योजना के तहत कुछ पशु मालिक गौ माता को मतलब के लिए रखा करते थे.लेकिन इस योजना के बंद होते हि कुछ पशु मालिक अपनी गौ माता को रोड पर मारने के लिए भगवान का नाम लेकर छोड़ रहे है. 

इसमें कुछ ग्राम के किसान भाई भी है जो अपने गौ माता को इस तरह रोड पर छोड़ रहे. या 500 /1000 में किसी कोचीया को बेच रहे.


  बात की जाये हमारे भारत देश की जहा गौमाता को कुछ के द्वारा माता का दर्जा दिया जाता. कुछ के द्वारा तो जानवर कहा जाता जानवर हि समझा जाता. लेकिन हमारे हिन्दू धर्म में प्राचीन समय से हि गौ माता को भगवान का दर्जा दिया जाता आ रहा. हिन्दू धर्म में विशेष महत्व माना जाता आ रहा है. ग्रंथो में भी इसका उल्लेख देखने को मिलता आ रहा.

लेकिन 

आज हमारे भारत देश में इन्ही गौमाता पर हो रहे अत्याचार हत्या क़त्लखाने को देखने से लगता है. इंसानियत अब ख़तम हो चुकी सरकार भी अब तक कतल्ख़नों को बंद नहीं कर पायी ना हि गौ माता के लिए किसी भी प्रकार की कोई सुरक्षा चाहे सत्ता सरकार किनकी भी हो.या फिर सरकार कुछ करना नहीं चाहती. चुप रहकर सरकार भी इन बेजुबानो पर अत्याचार हि कर रही.क्या इन सत्ता धारी पर कार्यवाही नहीं होनी चाइये. जो सत्ता में चूर अपना काम सही से नहीं कर रहे. अगर देश चलाना नहीं आता तो सत्ता में रहने का हक़ किसी को नहीं इन्हे तो अपनी कुर्सी छोर देनी चाइये.

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