CG विजन TV संवाददाता राम प्रताप सिंह की रिपोर्ट, बेलगहना
दालसागर धान खरीदी केंद्र पिछले दो वर्षों से लगातार किसानों के लिए चुनावी वादा और प्रशासनिक घोषणा का हिस्सा बना हुआ है, लेकिन हर बार की तरह इस वर्ष भी स्थिति साफ न होने से किसान असमंजस और नाराजगी की स्थिति में पहुँच चुके हैं। जैसे ही किसानों को प्रशासन द्वारा दालसागर खरीदी केंद्र खोलने की संभावित स्वीकृति की जानकारी मिली, क्षेत्र में उत्साह फैल गया, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही तस्वीर दिखा रही है।
टोकन रोका… किसानों की बढ़ी चिंता
लगभग 15 दिनों से दालसागर अंतर्गत आने वाले किसान बेलगहना धान खरीदी केंद्र के चक्कर काट रहे हैं ताकि समय पर धान बेचने का टोकन प्राप्त कर सकें।
लेकिन उन्हें यह कहकर टोकन देने से मना किया जा रहा है कि—
“आपका टोकन दालसागर केंद्र में कटेगा।”
पर समस्या यह है कि अभी तक यह स्पष्ट ही नहीं किया गया कि दालसागर केंद्र खुलेगा भी या नहीं।
छह गाँव के किसानों पर दोहरी मार
दालसागर के अंतर्गत आने वाले लगभग छः गाँव के किसानों को रोज बेलगहना जाकर टोकन और खरीदी संबंधी जानकारी लेने में भारी आर्थिक बोझ उठाना पड़ रहा है।
साथ ही—
बेलगहना जाने में अतिरिक्त इंधन, समय और श्रम व्यय,
और खरीदी सीजन में बेलगहना की यातायात व्यवस्था पर भारी दबाव
किसानों की परेशानियों को और बढ़ा देता है।
पिछले साल की तरह इस बार भी अनिश्चितता
पिछले खरीदी वर्ष में भी दालसागर केंद्र खोलने की पूरी तैयारी कर ली गई थी, लेकिन आखिरी समय में केंद्र बंद कर दिया गया और किसानों को मजबूरन बेलगहना केंद्र पर ही जाना पड़ा।
इस बार भी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार—
धान खरीदी केंद्र का पंजीयन क्रमांक जारी हो चुका है।
मैदानी स्तर पर तैयारी भी पूरी है।
परंतु उच्चाधिकारियों की अंतिम स्वीकृति रोककर रखी गई है।
कलेक्टर को ज्ञापन व बड़े आंदोलन की तैयारी
लगातार उत्पीड़न और असमंजस से परेशान किसान अब सामूहिक रूप से जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपने जा रहे हैं।
किसानों में यह भी चर्चा है कि यदि समस्या का समाधान जल्द नहीं हुआ, तो वे बड़े आंदोलन के लिए भी तैयार हैं।
वर्तमान राजनीतिक माहौल में विपक्ष भी इस मुद्दे को किसानों की पीड़ा के साथ जोड़कर अवसर तलाशता दिखाई दे रहा है।
प्रशासन की चुप्पी बढ़ा रही बेचैनी
अब तक प्रशासन की ओर से यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि—
दालसागर धान खरीदी केंद्र खुलेगा या फिर पिछले वर्षों की तरह इस बार भी किसान मायूस होंगे।
किसानों की निगाहें अब सिर्फ प्रशासनिक आदेश और जिला कलेक्टर के निर्णय पर टिकी हुई हैं।


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