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Gariyaband: झरगांव में बुढादेव के मंदिर उद्घाटन के अवसर पर राजगोंड समाज का विशाल सम्मेलन*

*झरगांव में बुढादेव के मंदिर उद्घाटन के अवसर पर राजगोंड समाज का विशाल सम्मेलन*


*पूर्वजों ने झरगांव के जिस जगह पर समाज के बनाये थे नियम उसी जगह पर अपने ईष्ट बुढादेव को किया स्थापित



गरियाबंद --चारगढ के  राजगोंड समाज ने मैनपुर विकासखण्ड के झरगांव में अपने ईष्ट बुढादेव का विशाल मंदिर का निर्माण करवाया है।इस विशाल मंदिर जिसे क्षेत्रीय बोली में गुढ़ी कहा जाता है वहां बुढादेव की मूर्ति का प्राण प्रतिष्ठा किया।बुढादेव के गुढ़ी उद्घाटन के अवसर पर समाज के विशिष्ट कलाकारों के द्वारा विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गये  20 से 24 फरवरी तक चल रहे इस विशाल आयोजन में समाज प्रमुखों के अलावा समाज के लोगों के द्वारा मंदिर के गुम्बद को अष्ट धातुओं सहित धन धान्य से भरे जाने का दृश्य आकर्षण का केन्द्र रहा ।इस अवसर पर केन्द्र सभा के संरक्षक गोवर्धन मांझी, केन्द्र सभापति डमरूधर पुजारी, सलाहकार हेमसिंग ध्रुवा सेवन पुजारी,नुआपडा सभापति दिव्य सिंह मांझी, अंतर्राज्यीय कमेटी सदस्य धनसिंग मरकाम और दयाराम मांझी,सहित महिला प्रकोष्ठ, ग्रुप सभापति, परिक्षेत्र अधिकारी,युवा प्रकोष्ठ के पदाधिकारी शामिल हुये।


*चारगढ के 50हजार समाजिक कार्यकर्ता मंदिर उद्घाटन,बुढादेव प्राण प्रतिष्ठा और सम्मेलन में शामिल हुये*


झरगांव में क्षेत्र के विशाल  मंदिर के उद्घाटन व प्राण प्रतिष्ठा और सामाजिक सम्मेलन में नुआपड़ा, कालाहाण्डी, बलांगीर, नवरंगपुर, गरियाबंद, महासमुंद, बागबाहरा के 50हजार से अधिक सामाजिक लोग शामिल हुये जिसमे युवा व महिला प्रकोष्ठ के पदाधिकारी व कार्यकर्ता भी शामिल हैं।


*wबच्चों से बुढ़े तक परम्परागत पोशाक में  दिखे*


आदिवासीयों के ईष्ट बुढादेव देव मंदिर उद्घाटन व प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर जहां समाज ने परम्परागत पोशाक को समाज के लिये अनिवार्य कर दिया था वहीं इस विशाल आयोजन में सभी पदाधिकारियों के अलावा  अपने परम्परागत पोशाक धोती कुर्ता में दिखे वहीं बच्चे भी धोती पहन कर वालेंटियर का कार्य करते दिखे।


*झरगांव में पूर्वजों ने बनाये थे समाजिक कायदे कानून इसलिये यहां ईष्ट देव को किया स्थापित*


आदिवासी  राजगोंड समाज  का अपना समाजिक नियम है  चारगढ के समाज के लोगों का मानना है झरगांव के जिस स्थान पर बैठकर पूर्वजों ने समाज के लिये कायदे कानून बनाये थे समाज ने आज उसी स्थान पर अपने ईष्ट देव का मंदिर बनाया और सामाजिक सम्मेलन आयोजित कर की नये नियम भी बनाये।

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