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Durgkondal: पोला त्योहार :बैलों का श्रंगार कर गर्भ पूजन सोहारी-चीला और ठेठरी खुरमी के साथ मनाएंगे पोला*

*पोला त्योहार :बैलों का श्रंगार कर गर्भ पूजन सोहारी-चीला और ठेठरी खुरमी के साथ मनाएंगे पोला*


बैल दौड़ स्पर्धा, किसानों के सम्मान सहित कई आयोजन होंगे, युवतियां गौठान, तालाब पार में पोरा पटकने जाएंगी



दुर्गूकोंदल। प्रकृति का पशुधन का महापर्व

बैलों के श्रृंगार व गर्भ पूजन का पर्व पोला भाद्रपक्ष की अमावस्या, 2 सितंबर, सोमवार को मनाया जाएगा। गौरतलब है कि किसी भी राज्य की सार्थक पहचान उसकी संस्कृति से होती है, जिसमें छत्तीसगढ़ भारत देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जो पूर्णतः कृषि कार्य प्रधान है। यहां धान प्रमुख फसल है।

पंडित हेमंन प्रसाद मिश्रा ने बताया कि छत्तीसगढ़ के निवासियों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत को कुछ इस तरह संजोकर रखा है। साल के विभिन्न अवसरों पर खेती कार्य आरंभ होने के पहले अक्ती, फसल बोने के समय सवनाही, उगने के समय एतवारी, भोजली, फसल लहलहाने के समय हरियाली आदि अवसरों व ऋतु परिवर्तन के समय को धार्मिक आस्था प्रकट कर उत्सव व त्योहार के रूप में मनाते हुए जनमानस में एकता का संदेश देते हैं। यहां के निवासी, पेड़ पौधों, जीव जंतुओं तथा प्रकृति को भी भगवान मानकर पूजा करते हैं।

कृषि और गृहस्थी से बच्चों को जोड़ने का पर्व चाबेला के पंडित तामेश्वर प्रसाद तिवारी ने बताया कि पोरा के दिन सुबह होते ही गृहिणी घर में गुडहा चीला, अनरसा, सोहारी, चौसेला, ठेठरी, खुरमी, बरा, मुरकू, भजिया, मूठिया, गुजिया, तसमई आदि पकवान बनाने में लग जाती हैं। किसान गौमाता व बैलों को नहलाते हैं। उनके सींग व खूर में पेंट या पॉलिस लगाकर, गले में घुंघरू, घंटी या कौड़ी से बने आभूषण पहनाते हैं। पूजा कर आरती उतारते हैं। फिर बेटों के लिए मिट्टी या लकड़ी के बैल खरीदकर खेलने के लिये देते

छत्तीसगढ़ी में कहते हैं पोरा

पं. तामेश्वर तिवारी ने बताया कि भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि मनाया जाने वाला पोला पर्व जिसे छत्तीसगढ़ में पोरा तिहार कहा जाता है। खरीफ फसल के द्वितीय चरण का कार्य (निंदाई, कोड़ाई) पूरा ही जाने तथा फसलों के बढ़ने खुशी में किसानों द्वारा बैलों की पूजन कर कृतज्ञता व्यक्त करते हुए मनाया जाता है। गर्भ पूजन पोरा की पूर्व रात्रि को गर्भ पूजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन अन्न माता गर्भ धारण करती है। अर्थात धान के पौधों में दूध भरता है। इसी कारण ग्रामीण क्षेत्रों में पोरा के दिन किसी को भी खेतों में जाने की अनुमति नहीं होती। रात में गांव का पुजारी बैगा, मुखिया तथा कुछ पुरुष अर्धरात्रि को गांव तथा गांव के बाहर सीमा क्षेत्र के कोने- कोने में प्रतिष्ठित सभी देवी देवताओं की विशेष पूजा- आराधना करते हैं। यह पूजन प्रक्रिया रात भर चलती है।

को की हैं। बेटियों के लिए रसोई घर में उपयोग किये जाने वाले छोटे छोटे मिट्टी के पके बर्तन चुकिया, जाता, पोरा आदि की पूजा कर पकवानों को भोग लगाने के बाद खेलने के लिए देते हैं। इस तरह से पोला पर्व को लेकर दुर्गाकोंडल के साप्ताहिक बाजार में नदिया बैला पोरा जाता की बहुत बिक्री हुई   लोग त्योहार को लेकर तैयारी में जुटे हुए वही पशुधन का महापर्व अचल में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा।

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