*भाजपा के सुशील यादव निर्विरोध बने नगर पंचायत के उपाध्यक्ष*
*उपाध्यक्ष के लिये बुलायी गयी सम्मिलन में नहीं दिखे पार्षद
*गरियाबंद* --देवभोग नगर पंचायत में चुनाव के बाद अध्यक्ष सहित 15 पार्षदों का शपथ ग्रहण के बाद जिला कलेक्टर के जारी आदेश के अनुसार 9 मार्च को नगर पंचायत का सम्मिलन आहुत कर इस प्रक्रिया को पूरा किया जाना था इस सम्मिलन के लिये अनुविभागीय अधिकारी डॉ.तुलसीराम मरकाम को प्राधिकृत अधिकारी नियुक्त किया गया।जिला निर्वाचन अधिकारी व कलेक्टर के निर्देश पर प्राधिकृत अधिकारी ने उपाध्यक्ष पद के निर्वाचन को पूरा करने रविवार के दोपहर 1.30 बजे नवनिर्वाचित अध्यक्ष व पार्षदों का सम्मिलन /बैठक आयोजित कराया था। जिसमें निर्धारित समय पर वार्ड 01के मंजुला प्रधान,वार्ड 13के पार्षद महादेव यदु और वार्ड 03 के पार्षद सुशील यादव उपस्थित थे,इस सम्मिलन में ना तो कांग्रेस के पार्षद पहुंचे और ना ही भाजपा के बाकि पार्षद नियमत: निर्धारित समय पर उपाध्यक्ष पद के लिये नाम निर्दिष्ट करना था जिसमें भाजपा के 03 पार्षद सम्मिलन कक्ष में उपस्थित होने के कारण वार्ड 03के पार्षद सुशील यादव ने नाम निर्दिष्ट किया निर्धारित समय पर कांग्रेस का नाम निर्दिष्ट नहीं हुआ जिसके फलस्वरूप नियमत:समयावधि में कोई अन्य नाम निर्दिष्ट नहीं होने के कारण भाजपा के सुशील यादव को निर्विरोध उपाध्यक्ष चुन लिया गया।
*क्या भाजपा में पहले से तय था या कोई अंतर्कलह है?*
नगर पंचायत देवभोग में भाजपा 10 सीटों पर चुनाव जीती है भले ही अध्यक्ष पद को हासिल नहीं कर सकी पर नगर पंचायत में भाजपा का दबदबा है ऐसे में पहले से ही माना जा रहा था उपाध्यक्ष भाजपा खेमे में से होगा। उपाध्यक्ष पद को लेकर भाजपा में काफी खिंचतान चला उपाध्यक्ष पद के दौड में वार्ड 03 के सुशील यादव,08के खिरलक्ष्मी सिंहा 10के कमलेश अवस्थी,और 11के अनुतोष अवस्थी के नाम का चर्चा था। अंतर्कलह ना बढ़े संगठन चार का पैनल बनाकर जिला को भेज दिया ऐसे चर्चा है उसके बाद एक नाम पर सहमति तो बन गयी पर भाजपा को कहीं ना कहीं डर सता रहा था कहीं क्रास वोटिंग ना हो जाये इसलिए भाजपा के बाकि पार्षद सम्मिलन कक्ष तक नहीं पहुंचे जैसे ही समय सीमा समाप्त हो गया वैसे ही शीर्षस्थ नेताओं के साथ बाकि पार्षद पहुंच गये। इससे ऐसा कयास लगाया जा रहा है कि भाजपा में उपाध्यक्ष पद को लेकर अंतर्कलह है।
*कांग्रेस आखिर उपाध्यक्ष के लिये पिछे क्यों हटी?*
उपाध्यक्ष पद को लेकर कांग्रेस ने कोई रूचि नहीं दिखाई इस सबके पिछे पार्षदों के संख्या बल का कम होना मुख्य कारण माना जा रहा है। पार्षदों की स्थिति पर एक नजर देखें तो भाजपा के पास 10, कांग्रेस के पास 04,और 01 निर्दलीय पार्षद हैं ऐसे में कांग्रेस उपाध्यक्ष पद के लिये अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं करना चाहती थी। अगर भाजपा में एक राय नहीं होता और उस परिस्थिति में भाजपा में फुट होता तो कहीं ना कहीं कांग्रेस इस बात का फायदा उठाती और उपाध्यक्ष पद पर भी अपना वर्चस्व स्थापित करने सफल भी हो सकती थी।
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