*हरेली पर्व का पारंपरिक एवं सांस्कृतिक रूप से समृद्ध आयोजन – शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला उपका*
Cgvtv संवाददाता राम प्रताप सिंह की रिपोर्ट
बेलगहना/उपका...
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के आधार पर निर्धारित सांस्कृतिक गतिविधियों के अंतर्गत शाला स्तर पर स्थानीय पर्वों के आयोजन के निर्देशानुसार। शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला उपका, विकासखंड कोटा, जिला बिलासपुर, संकुल केंद्र – उपका टेंगनमाड़ा में दिनांक 24 जुलाई 2025 को पारंपरिक छत्तीसगढ़ी त्यौहार "हरेली" का आयोजन हर्षोल्लास, धार्मिक भावना एवं सांस्कृतिक गरिमा के साथ संपन्न हुआ। यह आयोजन न केवल विद्यार्थियों के लिए एक सीखने का अवसर रहा, बल्कि इससे स्थानीय संस्कृति एवं कृषि परंपरा के प्रति सम्मान और जागरूकता का संदेश भी प्रसारित हुआ।
कार्यक्रम की प्रमुख विशेषताएँ रहीं
1. परंपरागत विधि से पूजन
हरेली पर्व के अवसर पर शाला प्रांगण में कृषकों द्वारा उपयोग किए जाने वाले प्रमुख औजारों जैसे — हल, कुदाल, फावड़ा, गैंती, बैलगाड़ी के हिस्से, हंसिया आदि की विधिवत पूजा-अर्चना की गई। इस दौरान शुद्धता एवं धार्मिक रीति-नीतियों का विशेष ध्यान रखा गया। विद्यार्थियों को इन उपकरणों की उपयोगिता एवं महत्व के बारे में बताया गया।
2. किसानों का सम्मान
शाला में ग्राम के वरिष्ठ एवं कर्मठ कृषकों को आमंत्रित किया गया। विद्यार्थियों एवं स्टाफ द्वारा उनका स्वागत किया गया और पुष्पवर्षा एवं तिलक के साथ सम्मानित किया गया। इससे विद्यार्थियों में अन्नदाता के प्रति सम्मान की भावना और गहरी हुई।
3. सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं विचार-विमर्श
शाला के प्रधान पाठक द्वारा उद्घाटन उद्बोधन में हरेली पर्व की सांस्कृतिक विरासत, कृषि-आधारित जीवनशैली तथा प्रकृति के प्रति कृतज्ञता जैसे पहलुओं पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने यह भी बताया कि ऐसे पर्व हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हैं और लोक-संस्कृति को जीवित रखते हैं। विद्यार्थियों द्वारा भी हरेली पर्व पर भाषण, कविता पाठ एवं गीत प्रस्तुत किए गए।
4. विद्यार्थियों की भागीदारी और गतिविधियाँ
विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्वक पारंपरिक खेलों में भाग लिया, विशेष रूप से गेंडी बनाना एवं गेंडी चलाना। छात्रों ने खुद बांस की गेंडी तैयार की और शाला परिसर में पारंपरिक लोक गीतों के साथ गेंडी चलाने की प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इससे विद्यार्थियों की रचनात्मकता, शारीरिक क्षमता और सांस्कृतिक जुड़ाव में वृद्धि हुई।
5. सांस्कृतिक बोध एवं पर्यावरण चेतना
कार्यक्रम में यह संदेश भी दिया गया कि हरेली पर्व प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का अवसर है। इसमें भूमि, वृक्ष, जल, पशु-पक्षियों और कृषि से जुड़े संसाधनों का संरक्षण करने का भाव समाहित है। विद्यार्थियों ने इसे गहराई से समझा और पर्यावरण के प्रति उत्तरदायित्व निभाने की शपथ ली।
विशेष उपलब्धियाँ:
- विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी से आयोजन अत्यंत रोचक और प्रेरणादायक बना।
- ग्राम के कृषकों एवं शाला विकास समिति (S.M.C.) के सदस्यों की उपस्थिति ने आयोजन को सामाजिक स्तर पर मजबूती प्रदान की।
- कार्यक्रम का उद्देश्य मात्र पर्व मनाना नहीं, अपितु "संवेदनशील नागरिकों का निर्माण" करना रहा, जिसमें परंपरा, सम्मान, संस्कृति और पर्यावरण के मूल तत्व जुड़े हुए थे।
हरेली पर्व का यह आयोजन न केवल विद्यार्थियों के लिए मनोरंजन और आनंद का अवसर रहा, बल्कि उनकी सोच, संवेदना और संस्कृति के प्रति दृष्टिकोण को भी सकारात्मक दिशा प्रदान करने वाला रहा। यह प्रयास शाला के संपूर्ण विकास और स्थानीय संस्कृति के संरक्षण की दिशा में एक प्रेरणास्पद पहल सिद्ध हुआ।
शाला परिवार भविष्य में भी ऐसे आयोजनों को निरंतरता प्रदान करने हेतु कटिबद्ध है।
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