*भाई बहन का रक्षाबंधन का त्यौहार अचल में हर्षोल्लास के साथ मनाया*।
दुर्गुकोंदल: दुर्गुकोंदल नगर एवं विभिन्न ग्रामीण अंचलों के साथ साथ बीएसएफ कैम्पों में शनिवार को रक्षाबंधन का पावन पर्व अत्यंत हर्षोल्लास, भाईचारे, सामुदायिक सद्भावना और सांस्कृतिक उल्लास के साथ मनाया गया। प्रकृति की गोद में बसी जनजातीय बस्तियों में शनिवार को दो पवित्र अवसरों-विश्व आदिवासी दिवस और रक्षाबंधन-का अद्भुत संगम देखने को मिला। "धरती माता के संरक्षक" कहे जाने वाले जनजातीय समुदाय ने इसे पर्यावरण प्रेम, सांस्कृतिक गौरव और भाई-बहन के अटूट स्नेह के उत्सव में बदल दिया। पारंपरिक वस्त्रों व प्राकृतिक आभूषणों से सजे बहनों और भाइयों ने परिवार के साथ एकत्र होकर विरासत व प्रेम के इस बंधन को हर्षोल्लास के साथ मनाया। रक्षाबंधन एक बहुत ही खास भारतीय पर्व है जो भाई-बहन के अटूट रिश्ते का प्रतीक है। पर्व के अवसर पर नगर व ग्रामीण क्षेत्रों में बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर,उनकी लंबी उम्र और खुशहाली की प्रार्थना किये। वहीं भाई अपनी बहनों को उपहार में नकद राशि,वस्त्र आदि उपहार में देते हुए उनकी हमेशा ख्याल रखने का वचन दिए। बीसएफ कैम्पों में भी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सैनिकों को राखी बांधकर घर से दूर रहने की दर्द को समाजिक सद्भाव के साथ दूर करते हुए खुशियां बांटी। यह त्योहार सावन के महीने में आता है, जो बारिश का मौसम होता है और पूरे भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया गया। राखी बांधने की परंपरा बहुत पुरानी है और इसके पीछे कई पौराणिक लोककथाएं ऐतिहासिक घटनाये व कहानियां भी जुड़ी हुई हैं। हर वर्षरक्षाबंधन का पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है और इस बार रक्षाबंधन का पर्व 9 अगस्त शनिवार को मनाया गया। संजय वस्त्रकार ब्याख्याता व योगाचार्य ने त्योहार के सार को आधुनिक सामाजिक संदर्भों से जोड़ते हुए कहा कि रक्षाबंधन सिर्फ एक भाई के हाथ पर बहन द्वारा राखी बांधने का रस्म नहीं है यह उससे बढ़कर है। यह त्योहार हमें तीन मूलभूत सामाजिक प्रतिबद्धताओं की याद दिलाता है।उन्होंने अपने संदेश में निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया: बहनें हमारे समाज की रीढ़ हैं। रक्षा का वचन लेते हुए हर भाई को यह प्रण लेना चाहिए कि वह न सिर्फ अपनी बहन, बल्कि समाज की हर बेटी, हर महिला की सुरक्षा, सम्मान और स्वावलंबन के लिए प्रतिबद्ध होगा। असली रक्षाबंधन तब सार्थक होता है जब हम महिलाओं को सशक्त बनाने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए आगे आते हैं। राखी का धागा जाति, धर्म या वर्ग के भेद को नहीं जानता। यह हमें सभी को एक सूत्र में बांधने, सामाजिक समरसता कायम करने और पारस्परिक सहयोग व भाईचारे को बढ़ावा देने का संदेश देता है। हमें अपने समाज को टकराव नहीं, बल्कि प्रेम और सहयोग से बुनना है। हमारा जल ,जंगल और जमीन अर्थात पर्यावरण हमारी माता के समान है, जो हमारी रक्षा करती है। रक्षाबंधन पर हमें यह संकल्प भी लेना चाहिए कि हम प्रकृति, नदियों, पेड़ों और इस धरती माता की रक्षा के लिए जागरूक होंगे और सक्रिय भूमिका निभाएंगे। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों जैसे प्लास्टिक राखियों के स्थान पर प्राकृतिक व पुनर्चक्रण योग्य सामग्री से बनी राखियों को प्राथमिकता देना इस दिशा में एक छोटा परन्तु महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
0 Comments