*18 वर्ष से प्रकृति पर कृतज्ञता जताने बाबा के आश्रम में यज्ञ के बाद राख से खेली जाती है होली*
*विश्व शांति ब्रम्ह यज्ञ के मुख्य अतिथि गौ माता और अन्य अतिथि चमगादड़, पलाश के वृक्ष और कीट पतंग
गरियाबंद --होली की अनोखी परम्परा के साथ प्रकृति पर कृतज्ञता जाहिर कर विश्व शांति ब्रम्ह यज्ञ मेला बाबा उदयनाथ के कांडसर आश्रम में पिछले 18 वर्षो से निरंतर मनाया जा रहा हैं।बाबा के इस अद्भुत यज्ञ मेला में सैकड़ों की संख्या में उनके अनुयाई और श्रद्धालु जुटते हैं वहीं 18 मार्च को गौ माता पूजन के बाद 22 मार्च से 25 मार्च तक पांच दिनों तक कलश स्थापना से लेकर विश्व शांति ब्रम्ह यज्ञ निरंतर चल रहा है।यज्ञ का समापन फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होगा और उसी यज्ञ के भभूत का तिलक लगाकर होली खेली जायेगी।इस अवसर पर आलेख पंथ के हरदास, रथ, बनमाली,सुधामणी, मनात्मक,ध्यानात्मक, लोकात्मक सहित कृष्ण चंद्र बाबा बतौर विशिष्ट अतिथिे उपस्थित हैं।
*बाबा के विश्व शांति यज्ञ में गौ माता मुख्य और पेड़ पक्षी और कीट पतंग अन्य अतिथि*
कांडसर के अलेख महिमा के पवित्र आश्रम में विश्व शांति को लेकर निरंतर चल रहे ब्रम्ह यज्ञ में जहां बाबा उदयनाथ स्वयं याज्ञिक है तो वहीं इस यज्ञ के मुख्य अतिथि गौ माता और अन्य अतिथि चमगादड़,पलाश के वृक्ष और गुबरेल भृंग अर्थात कीट पतंग होते है।एक तरह से बाबा के यज्ञ का उद्देश्य अनुयायी और श्रद्धालुओं को प्रकृति से जोड़कर रखना है।
*गौमाता के नगर भ्रमण के पश्चात कालीन बिछाकर स्वागत दो दिन बाद शुरू होता है यज्ञ*
गौ पालक के रूप में प्रसिद्ध संत बाबा उदयनाथ के यज्ञ शुरू होने से पूर्व यज्ञ के मुख्य अतिथि गौशाला के
गाय की पूजन के बाद नगर भ्रमण कराया जाता है दो दिन बाद जब उसकी वापसी होती है तो आश्रम में फिर से स्वागत कर कालीन बिछाकर सभा स्थान तक लाया जाता है।इस समय का परिदृश्य ऐसा होता है कि श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने कालीन सो जाते हैं गौमाता श्रद्धालु को लांग कर सभा स्थल पहुंचती है इस पर श्रद्धालुओं का मानना है गौमाता उनके सारे दुःख हर लेती है और उनका मनोकामना भी पूरा हो जाता है।
*हर साल बदलते है अतिथि पर गौमाता हमेशा होती है मुख्य अतिथि*
कांडसर आश्रम में होने वाले इस सप्त दिवसीय विश्व शांति यज्ञ के लिये प्रत्येक वर्ष अतिथि बदले जाते हैं पर गौवंश को सदैव के लिये मुख्य अतिथि बनाया जाता है।जिससे आशिर्वाद लेकर बाबा यज्ञ शुरू करते हैं और यज्ञ के समापन बाद बचे भभूत को तिलक लगाकर होली मनाने का परम्परा 18 वर्षो से चल रहा है।
*इस अनुठे होली के उद्देश्य पर क्या कहते हैं संत उदयनाथ?*
वर्ष 2005 से अब तक निरंतर चल रहे इस अनुठे होली के बारे याज्ञिक और आश्रम के संत बाबा उदयनाथ का कहना है होली सनातनी परम्परा है पर इसकी पवित्रता को आज के लोग तार तार कर रहे हैं हुड़दंग मांस - मदिरा सेवन,कर वातावरण को दुषित कर रहे हैं इसलिये लोगों को प्रकृति से जोड़कर इन सब व्यसनों से दुर रखने परम्परा के शुरूवात की गयी है और हजारों लोग इससे जुड़ भी रहे हैं।
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