*ग्रामीणों ने धान की बाली बांधकर मनाया बाल त्यौंहार*
दुर्गूकोंदल ।छत्तीसगढ़ को उसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपरागत त्योहारों के लिए पूरे देश में जाना जाता है। यहां के त्योहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि प्रकृति, कृषि, और सामुदायिक जीवन के साथ गहरे जुड़ाव को भी दर्शाते हैं।इस प्रदेश की खासियत यह है कि यहां हर त्योहार सामूहिक रूप से मनाया जाता है, जिसमें सभी जाति, वर्ग और समुदाय के लोग शामिल होते हैं। हर त्योहार में छत्तीसगढ़ की मिट्टी की खुशबू, पारंपरिक भोजन, लोकगीत, नृत्य और रीति-रिवाजों की झलक देखने को मिलती है।दुर्गूकोदल विकासखंड के ग्राम राऊरवाही,महेंद्रपुर,सटेली में ग्रामीणों ने बाल तिहार को बड़े उत्साह और परंपरागत तरीके से मनाया। ग्रामीण सुबह से ही शितला मंदिर में एकत्रित हुए और शितला माता की पूजा अर्चना की, फिर गांव के हर घर में धान की बाली बांधने की परंपरा निभाई गई। धान की बाली, जो फसल कटाई और समृद्धि का प्रतीक है, को घरों में बांधकर ग्रामीणों ने प्रकृति और कृषि के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की।बाल तिहार छत्तीसगढ़ की पारंपरिक संस्कृति का हिस्सा है। इसे नई फसल के स्वागत और खुशहाली का त्योहार माना जाता है। ग्रामीणों ने इस दिन अपने घरों को सजाया, पूजा-अर्चना की और धान की बाली को मुख्य द्वार और आंगन में बांधकर समृद्धि और शुभता की कामना की।गांव के सभी लोग मिलकर इस त्योहार को मनाते हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर किसी ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। इस अवसर पर गांव के बुजुर्गों ने बच्चों को बाल तिहार की परंपरा और महत्व के बारे में बताया। ग्रामीणों ने सामूहिक भोज का आयोजन भी किया, जिसमें पारंपरिक व्यंजन बनाए गए।बाल त्योंहार ने पूरे गांव में उत्सव का माहौल बना दिया। हर घर में धान की खुशबू, बाली की सजावट और पारंपरिक गीतों ने इस दिन को यादगार बना दिया। यह त्योहार न केवल कृषि आधारित संस्कृति को जीवित रखता है, बल्कि सामाजिक एकता और सामूहिकता मजबूत करता है।
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