*"बस्तर ओलंपिक के दूसरे दिन रोमांच और उत्साह का संगम" : दुर्गूकोंदल में खेलों की रंगत छाई*
*एथलेटिक्स खो खो कबड्डी और वॉलीबॉल के रोमांचक मुकाबले ने जीता दर्शकों का दिल*
*हजारों ग्रामीण दर्शकों की उपस्थिति में बस्तर की खेल संस्कृति हुई और समृद्ध*
दुर्गूकोंदल।बस्तर की धरती, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, आदिवासी संस्कृति और साहसिक परंपराओं के लिए जानी जाती है, इन दिनों खेलों के उत्सव में डूबी हुई है। विकासखंड स्तरीय बस्तर ओलंपिक प्रतियोगिता का दूसरा दिन 30 अक्टूबर को एक यादगार आयोजन बन गया, जहां हल्की बारिश के बीचप्रतिभागियों ने विभिन्न खेलों में इतने रोमांचक मुकाबले पेश किए कि दर्शक देर तक तालियां बजाते रहे। यह प्रतियोगिता न केवल युवा प्रतिभाओं को मंच प्रदान कर रही है, बल्कि दूर-सुदूर ग्रामीण अंचलों से आए लोगों के माध्यम से सामुदायिक एकता और उत्साह की मिसाल भी कायम कर रही है। सुबह से ही मैदान पर खिलाड़ियों की चहल-पहल शुरू हो गई थी, और जैसे-जैसे सूरज ऊंचा चढ़ता गया, वैसे-वैसे भीड़ का हुजूम बढ़ता चला गया। यह दिन खेलों की विविधता, प्रतिस्पर्धा की तीव्रता और दर्शकों के जोश से भरपूर रहा, जो बस्तर की खेल संस्कृति को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहा है।प्रतियोगिता के दूसरे दिन का आगाज एथलेटिक्स इवेंट्स से हुआ, जो हमेशा की तरह सबसे ज्यादा उत्साह जगाने वाले साबित हुए। 100 मीटर दौड़ में जूनियर वर्ग के लड़के और लड़कियां ट्रैक पर दौड़ते हुए दिखे, जहां हर कदम पर गति और तकनीक का अद्भुत संयोजन नजर आया। सीनियर पुरुष वर्ग में एक खिलाड़ी ने मात्र कुछ सेकंडों में फिनिश लाइन पार कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया, जबकि महिला वर्ग में प्रतिस्पर्धा इतनी कड़ी थी कि अंतिम क्षणों तक विजेता का फैसला लटका रहा। इसी क्रम में 200 मीटर और 400 मीटर दौड़ ने भी दर्शकों को अपनी सीटों से उठने पर मजबूर कर दिया। इन दौड़ों में खिलाड़ियों की सहनशक्ति और रणनीति का प्रदर्शन देखते ही बनता था। जूनियर और सीनियर, पुरुष और महिला सभी वर्गों में अलग-अलग आयोजित इन इवेंट्स ने युवा एथलीटों को अपनी प्रतिभा दिखाने का सुनहरा अवसर प्रदान किया।
एथलेटिक्स की फील्ड इवेंट्स ने भी कम रोमांच नहीं पैदा किया। भाला फेक में खिलाड़ियों ने अपनी शारीरिक शक्ति और सटीकता का परिचय दिया। दूर तक भाला उछालते हुए वे न केवल अंक हासिल कर रहे थे, बल्कि दर्शकों से वाहवाही भी बटोर रहे थे। लंबी कूद और ऊंची कूद में जूनियर लड़कियों का प्रदर्शन विशेष रूप से सराहनीय रहा, जहां उन्होंने हवा में उड़ान भरते हुए रिकॉर्ड तोड़ने की कोशिश की। जैवेलिन थ्रो, जो भाला फेक का ही एक रूप है, सीनियर वर्ग में आयोजित हुआ और यहां अनुभवी खिलाड़ियों ने अपनी तकनीक से सभी को प्रभावित किया। इन इवेंट्स में भाग लेने वाले प्रतिभागी बस्तर के विभिन्न विकासखंडों से आए थे, जो अपनी स्थानीय परंपराओं को खेल के मैदान पर लेकर आए। दूरदराज के गांवों से आए दर्शक अपने क्षेत्र के खिलाड़ियों को चिल्लाकर प्रोत्साहित कर रहे थे, जिससे मैदान गूंजायमान हो उठा। "दौड़ो-दौड़ो" के नारे और तालियों की गड़गड़ाहट ने वातावरण को उत्सवमय बना दिया।खो-खो, जो भारतीय परंपरागत खेल है, ने भी अपनी जगह बनाई। इस खेल में चेजिंग और डॉजिंग की कला ने खिलाड़ियों की चुस्ती को उजागर किया। जूनियर लड़कियों का खो-खो मैच विशेष रूप से आकर्षक रहा, जहां वे तेजी से दौड़ते हुए विरोधी टीम को आउट करने में माहिर साबित हुईं। वॉलीबॉल कोर्ट पर सीनियर पुरुष टीमों के बीच स्पाइक और ब्लॉक की जंग देखते ही बनती थी। नेट के ऊपर से होती हुईं जोरदार स्मैश ने कई बार दर्शकों को तालियां बजाने पर विवश कर दिया। कबड्डी, जो ताकत और रणनीति का खेल है, ने मैदान को गरमाया। रेड मारते हुए खिलाड़ी "कबड्डी-कबड्डी" का जाप करते हुए विरोधी लाइन में घुसते और वापस आने की कोशिश करते, जिससे उत्साह चरम पर पहुंच जाता। जूनियर और सीनियर दोनों वर्गों में कबड्डी के मुकाबले देर तक चले।
प्रदर्शनात्मक इवेंट के रूप में रस्साकसी केवल महिला सीनियर वर्ग में आयोजित की गई, जो दिन का सबसे मजेदार हिस्सा साबित हुई। दोनों टीमों ने रस्सी खींचते हुए अपनी सामूहिक शक्ति का प्रदर्शन किया। दर्शक हंसते-खेलते प्रोत्साहन दे रहे थे, और अंत में विजेता टीम की जीत पर खुशी की लहर दौड़ गई। यह इवेंट खेलों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने का प्रतीक बना।सहायक खंड शिक्षा अधिकारी अंजनी मंडावी ने बताया कि पूरे दिन दूर-सुदूर अंचलों से आए ग्रामीण दर्शक मैदान के चारों ओर जमा हो गए। वे अपने प्रिय खिलाड़ियों को सपोर्ट करने के लिए चिल्ला रहे थे, जिससे वातावरण में ऊर्जा का संचार हो रहा था। बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं और युवा सभी खेल का लुत्फ उठा रहे थे। आयोजकों ने पानी, छाया और बैठने की व्यवस्था की थी, जिससे कोई असुविधा न हो। खिलाड़ियों के लिए मेडिकल टीम और कोचिंग स्टाफ मौजूद रहा, जो उनकी सुरक्षा सुनिश्चित कर रहा था।यह प्रतियोगिता बस्तर के विकासखंड स्तर पर खेलों को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यहां के युवा, जो अक्सर संसाधनों की कमी से जूझते हैं, ऐसे मंच पर अपनी प्रतिभा दिखाकर आत्मविश्वास हासिल कर रहे हैं। दूसरे दिन के मुकाबलों ने साबित किया कि बस्तर में खेल प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। उत्साहपूर्ण भागीदारी ने न केवल खिलाड़ियों को प्रेरित किया, बल्कि पूरे क्षेत्र में खेल संस्कृति को मजबूत किया। जैसे-जैसे दिन ढलता गया, मैदान पर सूर्यास्त की लालिमा बिखर रही थी, और दर्शक घर लौटते हुए अगले दिन की चर्चा कर रहे थे। बस्तर ओलंपिक का यह उत्सव निश्चित रूप से क्षेत्र की खेल विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचा रहा है, और दूसरे दिन का रोमांच आने वाले दिनों के लिए उत्सुकता बढ़ा गया है। इस अवसर पर प्रतिभागियों सहित सुरेंद्र कुमार बंजारे सीईओ,विप्लव कुमार डे बीईओ, आर डी ठाकुर, आर के किशोरे , बाबूलाल कोमरे,लतीप सोम ,श्री अशोक जैन पिछड़ा वर्ग जिला उपाध्यक्ष ,भाजपा कार्यकर्ता, हुमन मरकाम विधायक प्रतिनिधि विभिन्न खेल संयोजक एवं प्रभारी प्रकाश गोस्वामी, निर्मल कुमार, अजय नेताम,देवलाल चुरेंद्र, राजेंद्र आवड़े, चिंताराम ठाकुर, मनीषा सिन्हा , कुमुद ध्रुव, हरीश साहू, बिरेंद्र रावटे, थानेश्वर प्रसाद चंद्राकर, हेमंत श्रीवास्तव, राजकुमार चंदाकर, किशोर विश्वकर्मा , शंकर नागवंशी, टिकेश्वर साहू, हेमलाल खरे, तुलसी केमरो आदि उपस्थित रहे।

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