*मणिपुर हिंसा: बेबस आदिवासी और बेशर्म सरकार*
दुर्गुकोंडल 21 जुलाई 2023 सामाजिक कार्यकर्ता एवं आदिवासी छात्र युवा संगठन के प्रदेश अध्यक्ष राजेश नुरुटी एवं आदिवासी छात्र युवा संगठन के ब्लॉक अध्यक्ष मानसू आचला सयुक्त रूप से प्रेस नोट जारी कर मणिपुर राज्य में हो रहे हिंसा के संबंध में निंदा की है।और अफील किया है। देश के जितने भी मानवाधिकार संगठन महिला संगठन जनवादी संगठन बुद्धिजीवी पत्रकार अधिवक्ता गण शिक्षक शिक्षिकाएं सामाजिक संगठन छात्र संगठन सभी इस घटना का पूरजोर तरीके विरोध करें। और दोषी व्यक्तियों के ऊपर कठोर कानूनी कार्यवाही की मांग करे। मध्यप्रदेश में एक आदिवासी के ऊपर पेशाब कांड अभी शांत नहीं हुआ था कि मणिपुर में फिर आदिवासी महिलाओं के ऊपर शर्मनाक घटना कों अंजाम दिया गया हैँ। ये सभी घटनाएं आदिवासियों को सोचने में मजबूर कर दिया हैँ।
पूर्वोत्तर भारत में स्थित मणिपुर राज्य एक आदिवासी प्रधान राज्य है जहां नागा एवं कुकी आदिवासी समुदायों की बहुलता है। आदिवासियों को मिलने वाले आरक्षण के अंदर हिंदू मैतई समुदाय द्वारा खुद के लिए आरक्षण की मांग को लेकर मई महीने के प्रथम सप्ताह से मणिपुर राज्य में हिंसा फैली हुई है। जब से केंद्र में आर एस एस बी जे पी की मनुवादी सरकार सत्ता में काबीज हुई तभी से देश के महिलाओं से लेकर आदिवासियों दलितों अल्पसंख्यकाे के ऊपर अत्याचार और हिंसा बढ़ गयी हैँ इसका मूल कारण मनुस्मृति मनुवादी सोच को उजागर करती है। स्त्री विरोधी सोच रखने वाले मनुवादी लोंगो ने वर्षो पहले एक चौपाई लिखा था। जिसको मणिपुर में पुरुष प्रधान समाज ने सिद्ध किया हैँ जैसे ढोल गवार शुद्र पशु और नारी,
यह ताड़ना के अधिकारी।
जिस समुदाय ने मणिपुर में घटना को अंजाम दिया है मेंथेंई हिंदू समाज है। जिसका रूलिंग पार्टी बीजेपी समर्थन कर रही हैँ। इसी कारण 78 दिन बीत जाने के बाद भी देश के प्रधानमंत्री से लेकर मणिपुर के मुख्यमंत्री तक मैथेई उग्रवादियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं किए हैं ना एक शब्द भी नहीं बोले हैं।
राज्य भर में फैली इस हिंसा से कई आदिवासी पुरुष, महिलाओं एवं बच्चों की जान चली गई है जबकि हजारों आदिवासियों को बेघर होकर शरणार्थी शिविरों में रहना पड़ रहा है। हाल ही में सोशल मीडिया में फैले एक वीडियो को देखकर देश में आदिवासियों की दयनीय स्थिति को आसानी से समझा जा सकता है। इस वीडियो में भीड़ द्वारा दो आदिवासी युवतियों को नग्न कर उनका परेड कराया जा रहा है और उनके शरीर के साथ गलत हरकतें की जा रही है।
अब सवाल यह उठता है कि दो आदिवासी युवतियों को नंगा किया गया या संविधान एवं भारतीय लोकतंत्र को नंगा किया गया है। देश में कई जगह हिंसा होती है लेकिन क्या किसी हिंसा में किसी ऊंची जाति की महिलाओं को नंगा करके परेड कराया जाता है। हिंसा किसी भी रूप में और किसी के साथ भी स्वीकार्य नहीं है, लेकिन यह हिंसा और नग्नता सिर्फ आदिवासियों के साथ ही क्यों होती है। इस पूरे घटनाक्रम में कानून द्वारा दोषियों को सजा तो दी जाएगी लेकिन समाज एवं सरकार की सड़ी हुई मानसिकता की जिम्मेदारी कौन लेगा।
देश दुनिया में घूम घूम कर सद्बुद्धि का प्रवचन देने वाले माननीय प्रधानमंत्री जी की बुद्धि मणिपुर के मामले में शून्य क्यों हो जाती है यह समझ से परे है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस पूरे मामले में स्वयं ही कार्रवाई करने की चेतावनी देना केंद्र एवं मणिपुर राज्य सरकार के लिए शर्म का विषय है। यदि सर्वोच्च न्यायालय स्वयं ही कानून व्यवस्था सुधारने लगे तो चुनी हुई सरकारों की जरूरत ही क्या है।
मणिपुर में आदिवासी महिलाओं के साथ हुए इस दर्दनाक घटना से बस्तर क्षेत्र के प्रत्येक आदिवासी भाई बहनों को गहरा आघात लगा है। दुख की इस घड़ी में बस्तर क्षेत्र का प्रत्येक आदिवासी मणिपुर के आदिवासियों के साथ कंधा से कंधा मिला कर खड़ा है।

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