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Durgkondal: *देवउठनी एकादशी आज व कल हर्षोल्लास से संपन्न, आरम्भ होंगे मांगलिक कार्य* *तुलसी विवाह को लेकर बाजारों में बढ़ी रौनक, गन्ने की हो रही जोरदार खरीद* दुर्गुकोंदल। सनातन परंपरा में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को देवउठानी एकादशी या देवप्रबोधिनी एकादशी के रूप में बड़े श्रद्धाभाव से मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार महीने बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागृत होते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है, जिसके दौरान विवाह, गृहप्रवेश सहित सभी मांगलिक कार्यों का आयोजन वर्जित माना जाता है। देवउठनी एकादशी के साथ ही पुनः शुभ कार्यों की शुरुआत मानी जाती है।पंचांग के अनुसार इस वर्ष एकादशी तिथि 1 नवंबर शनिवार सुबह 9:11 बजे से प्रारंभ होकर 2 नवंबर रविवार सुबह 7:31 बजे तक रही। शुक्रवार रात्रि और शनिवार को पूरे दिन एकादशी तिथि विद्यमान रहने के कारण 1 नवंबर का दिन व्रत, पूजा, देवउठान संस्कार एवं धार्मिक अनुष्ठानों के लिए विशेष श्रेष्ठ माना गया। अंचल के विभिन्न मंदिरों तथा घरों में भक्तों ने विधि-विधान से श्रीहरि का पुजन-अर्चन कर देवउठान का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया। देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का विशेष आध्यात्मिक महत्व है। मान्यता के अनुसार इस दिन शालिग्राम भगवान और तुलसी माता का विवाह कराया जाता है। इस अवसर पर श्रद्धालु गन्ने का मंडप सजाकर तुलसी जी को वधू तथा शालिग्राम को वर रूप में विराजित करते हैं। मंत्रोच्चार के साथ विवाह संस्कार संपन्न होने के पश्चात भजन, कीर्तन और प्रसाद वितरण का क्रम शुरू होता है।तुलसी विवाह को लेकर स्थानीय बाजारों में गन्ने की खरीद में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखने को मिली। महिलाओं द्वारा पूजा सामग्री, फूल-माला, दीप, सजावटी सामग्री और घर-आंगन सजाने हेतु अन्य सामग्रियों की खरीदी से बाजारों में विशेष रौनक बनी रही।धार्मिक परंपराओं के अनुसार देवउठनी एकादशी का व्रत रखने, पूजा करने और तुलसी विवाह में सम्मिलित होने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि, सौभाग्य और शांति की प्राप्ति होती है। यह पर्व समाज में सद्भाव, सहयोग, भक्ति और आध्यात्मिक चेतना को भी प्रोत्साहित करता है। इस प्रकार, दुर्गुकोंदल क्षेत्र में देवउठनी एकादशी का पर्व इस वर्ष भी पूरी श्रद्धा, उत्साह और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया गया और इसके साथ ही क्षेत्र में पुनः विवाह तथा अन्य मांगलिक कार्यों की शुरुआत होने जा रही है।

 *देवउठनी एकादशी आज व कल हर्षोल्लास से संपन्न, आरम्भ होंगे मांगलिक कार्य*

 

*तुलसी विवाह को लेकर बाजारों में बढ़ी रौनक, गन्ने की हो रही जोरदार खरीद*



दुर्गुकोंदल। सनातन परंपरा में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को देवउठानी एकादशी या देवप्रबोधिनी एकादशी के रूप में बड़े श्रद्धाभाव से मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार महीने बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागृत होते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है, जिसके दौरान विवाह, गृहप्रवेश सहित सभी मांगलिक कार्यों का आयोजन वर्जित माना जाता है। देवउठनी एकादशी के साथ ही पुनः शुभ कार्यों की शुरुआत मानी जाती है।पंचांग के अनुसार इस वर्ष एकादशी तिथि 1 नवंबर शनिवार सुबह 9:11 बजे से प्रारंभ होकर 2 नवंबर रविवार सुबह 7:31 बजे तक रही। शुक्रवार रात्रि और शनिवार को पूरे दिन एकादशी तिथि विद्यमान रहने के कारण 1 नवंबर का दिन व्रत, पूजा, देवउठान संस्कार एवं धार्मिक अनुष्ठानों के लिए विशेष श्रेष्ठ माना गया। अंचल के विभिन्न मंदिरों तथा घरों में भक्तों ने विधि-विधान से श्रीहरि का पुजन-अर्चन कर देवउठान का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया।

देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का विशेष आध्यात्मिक महत्व है। मान्यता के अनुसार इस दिन शालिग्राम भगवान और तुलसी माता का विवाह कराया जाता है। इस अवसर पर श्रद्धालु गन्ने का मंडप सजाकर तुलसी जी को वधू तथा शालिग्राम को वर रूप में विराजित करते हैं। मंत्रोच्चार के साथ विवाह संस्कार संपन्न होने के पश्चात भजन, कीर्तन और प्रसाद वितरण का क्रम शुरू होता है।तुलसी विवाह को लेकर स्थानीय बाजारों में गन्ने की खरीद में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखने को मिली। महिलाओं द्वारा पूजा सामग्री, फूल-माला, दीप, सजावटी सामग्री और घर-आंगन सजाने हेतु अन्य सामग्रियों की खरीदी से बाजारों में विशेष रौनक बनी रही।धार्मिक परंपराओं के अनुसार देवउठनी एकादशी का व्रत रखने, पूजा करने और तुलसी विवाह में सम्मिलित होने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि, सौभाग्य और शांति की प्राप्ति होती है। यह पर्व समाज में सद्भाव, सहयोग, भक्ति और आध्यात्मिक चेतना को भी प्रोत्साहित करता है।

इस प्रकार, दुर्गुकोंदल क्षेत्र में देवउठनी एकादशी का पर्व इस वर्ष भी पूरी श्रद्धा, उत्साह और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया गया और इसके साथ ही क्षेत्र में पुनः विवाह तथा अन्य मांगलिक कार्यों की शुरुआत होने जा रही है।

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